अर्जुन जो पुरुष मन से इंद्रियों को वश में
अर्जुन जो पुरुष मन से इंद्रियों को वश में
सीताराम राधे कृष्ण मित्र आशा करते हैं कि आपके घर में सब सुख शांति से होंगे और मंगल होगा | तो श्लोक नंबर सात से हम करते हैं तब श्री कृष्ण जी कहते हैं किंतु हे अर्जुन जो पुरुष मन से इंद्रियों को वश में करके अनासक्त हुआ समस्त इंद्रियों द्वारा कर्म योग का आचरण करता है वही श्रेष्ठ है | कि हे अर्जुन जो पुरुष मन से इंद्रियों को अपने वस में कर लेता है समस्त इंद्रियो को एकजुट कर कर्म योग का आचरण करता है
श्लोक नंबर आठ तो शास्त्र विभेद का कर्तव्य कर्म कर
वही सर्वश्रेष्ठ होता है | श्लोक नंबर आठ तो शास्त्र विभेद का कर्तव्य कर्म कर क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा |श्री कृष्ण जी कहते हैं तू शास्त्र विहित जो शास्त्रों में लिखा हुआ है कर्तव्य और कर्म कर | यह मनुष्य समुदाय कर्मों से बंधता है .इसलिए हे अर्जुन तू आसक्ति से रहित होकर उस यज्ञ के निमित्त ही भली भाति कर्तव्य कर्म कर देखिए |प्रभु बोलते हैं कि यज्ञ के नियमित किए जाने वाले नियमित यज्ञ करने से कर्मों से अतिरिक्त दूसरे कर्मों में लगा हुआ यह मनुष्य कर्मों से बंधता है
अगर किसी गलत संगत में बैठ जाता है
भोग प्रदान करने वाला हो प्रजापति ब्राह्मण थे
इसलिए हे अर्जुन तू आसक्ति से रहित होकर तू यज्ञ के निमित्त भली भाती कर्तव्य कर्म कर | प्रजापति ब्राह्मण कल्प के आदि में यज्ञ सहित प्रजा को रचकर उस उनसे कहा कि तुम लोग इस यज्ञ के द्वारा वृद्धि को प्राप्त हो और यह यज्ञ तुम लोगों की इच्छित भोग प्रदान करने वाला हो प्रजापति ब्राह्मण थे |
परम कल्याण को प्राप्त हो जाओ
तुम इस यज को अगर करते हो तो देवताओं को उन्नत करो और वे देवता तुम लोगों को उन्नत करें इस प्रकार निस्वार्थ भाव से एक दूसरे को उन्नत करते हुए तुम लोग परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे |आप सिर्फ अपने कर्म करते जाइए और आपको कर्मों का फल अवश्य मिलता है यह विधि का विधान विधाता द्वारा रचित है कि आपको जो फल मिलेगा |
श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त
वह आपके समय पर ही मिलेगा यज्ञ द्वारा बढ़ाए हुए देवता तुम लोगों को बिना मांगे ही इच्छित भोग निश्चय ही देते रहेंगे यज्ञ करते हैं यज्ञ द्वारा बढ़ाए हुए यज्ञ ज्योति जल रही है परमात्मा को सब कुछ पता रहता है निश्चय ही देते रहेंगे यग से बचे हुए अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते हैं
माता-पिता का फर्ज क्या होता है
जो यज्ञ से बचा हुआ अन्न होता है जो पापी लोग अपना शरीर पोषण करने के लिए ही अन्न पकाते हैं वे तो पाप को ही खाते हैं | माता-पिता का फर्ज क्या होता है माता पिता का फर्ज सिर्फ इतना होता है व जिंदगी भर अपने बच्चों को कमा कर खिलाते हैं उनके भविष्य के बारे में सोचते हैं उनको बड़ा करते हैं उनकी सारी इच्छाएं पूर्ण करते हैं |
अगर किसी गलत संगत में बैठ जाता है
खुद अपना जो कपड़ा पहनेंगे उसमें छेद होगा पर अपने बच्चे के कपड़े के छेद पसंद नहीं होगा | मां बाप को और बाप एक कैसे होते हैं जो अपने बनियान को साल चलाएंगे पर अपने बच्चे के लिए कम से कम साल भर में पांच से छह बनयान लाएंगे अगर व जरा सा फट जाएगा तो उसको चेंज कर देंगे और वही बालक बड़ा होकर क्या करता है कि अलग अगर किसी गलत संगत में बैठ जाता है और उसको जरा सा उसके पापा या पिताजी उसको डाट देते हैं वह बालक लौट कर अगर अपने पिताजी को बोलता है
अपनी इच्छाएं मारकर सब अपने बच्चों के लिए किया
बोला आपने किया क्या तो सोचिए उस बाप पर क्या बीती होगी जिसने महल जैसा घर बना दिया हो तुमको सारी इच्छाएं पूरी की हो तुमको बचपन से लगाकर अभी तक तुमको इतना बड़ा किया तुम्हारी सारी इच्छाएं पूरी की तुमने कुछ भी नहीं किया और सब मां बाप ने किया अपनी इच्छाएं मारकर सब अपने बच्चों के लिए किया और वह बच्चा बड़ा होकर उनको यह बोले कि आपने हमारे लिए क्या किया सबके सामने तो सोचिए उस बाप पर क्या बति होगी तो ऐसा ना करें | भगवान के लिए ना करें | जिन संतान के ऊपर मां-बाप की छत्र छाया नहीं होती है कभी आप उनसे मिलकर देखिए कभी मां-बाप को समझिए | यहीं पर समाप्त करते हैं कल मिलते हैं | सीताराम राधे कृष्ण
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