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अर्जुन को पार्थ क्यों कहते हैं?
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मनुष्य से पाप कौन करवाता है
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श्री कृष्ण जी कहते हैं कि जो लोभ मतलब अपने भोग ?
श्री कृष्ण जी कहते हैं कि जो लोभ मतलब अपने भोग ?
श्रीमद् भगवत गीता
सीताराम आज हम श्रीमद् भगवत गीता का जहां से अध्याय खत्म किया था हिंदी में अनुवाद करेंगे संस्कृत में थोड़ा मुझे भी दिक्कत होती है और आपको भी थोड़ा सा दिक्कत होगी बोल तो मैं पाता हूं पर समझने में थोड़ा सा दिक्कत हो जाएगी तो क्यों ना हिंदी में कहा जाए भगवान बोलते हैं कि आप किसी भी लैंग्वेज में याद कीजिए तो हे श्री कृष्ण पाप आपके अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियां अत्यंत दूषित हो जाती हैं और हे वासने स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वर्ण शंकर उत्पन्न होता है वर्ण शंकर कुल घाती हों और कुल को नर्क में ले जाने के लिए ही होता है लुप्त हुई पिंड और जल की क्रिया वाले अर्थात श्राद और तर्पण से वर्च इनके पितृ लोग भी अधोगति प्राप्त होते हैं इन वर्ण संकरा दोषों के दोषों से कुल घाती हों के संतान कुल धर्म और जाति धर्म नष्ट हो जाते हैं
कलयुग में हम सब कुछ भूल गए हैं
हे जनार्दन जिनका कुल धर्म नष्ट हो गया है ऐसे मनुष्य का अनिश्चित काल तक नरक में वास होता है यह अर्जुन जी श्री कृष्ण जी से पूछते हैं कि हे जनार्दन जिनका कुल धर्म नष्ट हो गया है ऐसे मनुष्य का अनिश्चित काल तक नर्क में वास होता है हम ऐसा सुनते आए हैं तब श्री कृष्ण जी जवाब देते हैं हां हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गए हैं यह बात तो सही है हम लोग बुद्धिमान है बहुत बुद्धिमान है कलयुग में हम सब कुछ भूल गए हैं अपने अध्यात्म को भूल गए हैं अपने सनातन को भूल गए हैं जो राज्य सुख के लोभ से सब स्वजनों को मारने के लिए उगत हो गए हैं यदि मुझ सहस्त्र रहित एवं सामना ना करने वाले को सहस्त्र हाथ में सस्त्र हाथ में लिए हुए धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मार डाले तो वह मारना भी मेरे लिए अधिक कल्याण होगा
अपने भाई भाई को काट रहा है
श्री कृष्ण जी कहते हैं कि जो लोभ मतलब अपने भोग जो इच्छाएं भोग लालच इस लिए अपने भाई भाई को काट रहा है भाई भाई को काट देता है जगह-जगह को काट देती स्त्स्त्रियों के चक्कर में काट देते हैं कोई भी मतलब पैसे के चक्कर में किसी को भी काट देता है इसका अर्थ यही है कि लोभ के लिए जो किसी को भी मार देता है वह हमेशा नर्क में ही वास करता है और उन्होंने यह भी कहा है कि मैं इस रणभूमि में शस्त्र रहित हूं अगर शस्त्र रहित होने के बावजूद भी अगर मेरा वद धृतराष्ट्र के पुत्र के हाथ हो जाता है तो वह मरना मरना भी मेरे लिए अध्य कल्याण है क्योंकि वह शस्त्र रहित थे दूसरी चीज आप शस्त्र रहित बोलेंगे तीसरी चीज वो धर्म की ओर से थे यह बात है तब संजय बोले रणभूमि में मैं शौक से उदगी मन वाले अर्जुन इस प्रकार कहकर बाण सहित धनुष को त्याग कर रथ के पिछले भाग में बैठ गए संजय बोले उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आंसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोक युक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने यह वचन कहा श्री भगवानबोले हे अर्जुन तुझे इस समय यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ है क्योंकि न तो तू न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आच है ना स्वर्ग को देने वाला और ना ही कीर्ति को करने वाला है
हे अर्जुन जो न नपुंसक होता है
हे अर्जुन जो न नपुंसक होता है ना नपुंसक जिसको बोलते हैं नपुंसक जिसके अंदर डर भरा होता है मेरे साथ ऐसा हो जाएगा मैं अगर ऐसे कर दूंगा तो व मेरे गर्दन काट देंगे यह कर देंगे वो कर देंगे ऐसा भी होता है तो यह उनके लिए कहा गया है कि नपुंसकता को तुम छोड़ो तुझ में यह उचित नहीं जान पड़ती हे परम तप हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिए खड़ा हो जा तो अंत में युद्ध के लिए इंसान को खड़ा होना पड़ता है संजय बोले हे राजन निद्रा को जीतने वाले अर्जुन अंतर्यामी श्री कृष्ण महाराज के प्रति इस प्रकार कहकर युद्ध नहीं करूंगा यह स्पष्ट कहकर चुप हो गए तब श्री कृष्ण जी बोलते हैं हे भरत वंशी श्री कृष्ण महाराज दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए भगवान बोले हे अर्जुन तू ना शोक करने योग्य मनुष्य के लिए शोक करता है और ना पंडितों के वचनों को कहता है परंतु जिनके प्राण चले गए हैं उनके लिए और जिनके प्राण नहीं गए उनके लिए भी पंडित जन शोक नहीं करते यह बात सत्य है जो चला गया उसके लिए कोई शोक नहीं करता ज्यादा से ज्यादा 15 दिन शोक करते हैं सिर्फ माता ही शोक कर सकती है
यह देह हमारा एक किराए का मकान है
कि मैं किसी किसी काल में नहीं था तू नहीं था अथवा यह राजा लोग नहीं थे और ना ही ऐसा ही है कि आगे हम सब नहीं रहेंगे जैसे जीव आत्मा की इस देह में बालकपन जवानी और वृद्ध अवस्था होती है वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता है यह बात भी सही है हम एक जीवात्मा है यह देह हमारा एक किराए का मकान है जिसमें हम रह रहे हैं इसमें एक मिनट का भी भरोसा नहीं होता किसी का भी ये उन्होंने सत्य बोला इस बात को हे कुंती पुत्र सर्दी गर्मी और सुख दुख को देने वाले इंद्रिय और विषयों के सहयोग को उत्पत्ति विषन विनाश शल और अनित्य है इसलिए हे भारत उनको तू सहन कर आज का अध्याय यही समाप्त करते हैं राधे कृष्ण सीताराम
श्री कृष्ण जी कहते हैं कि जो लोभ मतलब अपने भोग ?
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नवंबर 06, 2024
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