तू तत्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ
तू तत्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ
सीताराम मित्रों कैसे हैं आप आशा करते हैं | सब सुख शांति से होंगे घर में सब सुख शांति से होंगे आप अपने माता पिता की सेवा कर रहे होंगे | तो यह अध्याय नंबर चार के श्लोक नंबर 33 पर हमने समाप्त किया था |आज हम अध्याय चार समाप्त कर समापन करेंगे और अध्याय पाच को प्रारंभ करेंगे | तो श्लोक नंबर 34 में बोलते हैं |उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ उनको भली भाति दंडवत प्रणाम करने से उन की सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलता पूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्मा तत्व को भली भाति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्व का ज्ञान का उपदेश देंगे मतलब जो ज्ञानी पुरुष है
जो तत्व परमात्मा परम ब्रह्म का ज्ञान देंगे
भगवान श्री कृष्ण बोल रहे कि जो ज्ञानी पुरुष है अगर तुम उनकी शरण में जाओगे, और उनसे अच्छे से प्रार्थना करोगे ,तो वो तुम्हे परमात्मा जो तत्व परमात्मा परम ब्रह्म का ज्ञान देंगे, जिसको जानकर फिर तू इस प्रकार मोह को नहीं प्राप्त होगा तथा हे अर्जुन जिस ज्ञान का द्वारा तू संपूर्ण भूतों को नि शेष भाव से पहले अपने में और पीछे मुझे सच्चिदानंदन परमात्मा में देखेगा देखि उसमें प्रभु बोल रहे हैं |
सच्चिदानंदन परमात्मा को देखेगा |
श्री कृष्ण जी बोल रहे हैं | कि हे अर्जुन वो ज्ञान लेने के बाद में जो तू अपने जो पंचभूत होते हैं हमारे पंचभूत होते हैं जिनके जिनसे हमारा शरीर बनता है भूमि व अग्नि नीर पृथ्वी तो ये ये जो है ना ये पंच अग्नि ये हमारे पंचभूत इनके भाव से पहले सबसे पहले तोत उसमें अपने आप को देखेगा और दूसरे में मेरे को देखेगा सच्चिदानंदन परमात्मा को देखेगा | यदि तू अन्य सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है
निसंदेह संपूर्ण पाप समुद्र भली भाति तर जाएगा
तो भी तू ज्ञान रूप नौका द्वारा निसंदेह संपूर्ण पाप समुद्र भली भाति तर जाएगा अगर तू यह युद्ध करता है जो धर्म युद्ध है और तुझे लगता है कि तू सभी पापियों से भी अधिक पाप कर रहा है फिर भी तू जो भवसागर में भवसागर में तेरी जो नौका जाएगी वो तू उसे पार कर जाएगा क्योंकि यह पाप का नहीं धर्म का युद्ध है वह अच्छे अच्छे प्राणी है पर वो इस समय तो अधर्म का साथ दे रहे हैं | ना तुम धर्म का साथ दे रहे हो भले ही सामने तुम्हारा दुश्मन है | क्योंकि हे अर्जुन जैसे प्रज्वलित अग्नि इंधन को भस्म में कर देता है वैसे ही ज्ञान रूप अग्नि संपूर्ण कर्मों को भस्मम कर देता है |देखिए बहुत अच्छा उदाहरण दे रहे हैं सीताराम |
गीता जी में तत्वदर्शी संत कौन थे?
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में क्या लिखा है?
भगवत गीता का पहला श्लोक क्या है?
कोई टिप्पणी नहीं