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मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूं |

मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूं |


मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूं |




सीताराम राधे कृष्ण मित्र कैसे हैं | आप आशा करता हूं | सब सुख शांति से होंगे घर में सब मंगलमय होगा और आप अपने माता-पिता की सेवाअच्छे से कर रहे होंगे अपने ग्रस्त जीवन में अच्छे से व्यस्त होंगे भगवान को याद कर रहे होंगे | हमने कल अध्याय चार श्लोक नंबर 10 तक समापन किया था | श्लोक नंबर 11 भगवान कहते हैं | हे अर्जुन जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं | मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूं |

मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं |

क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं | कि इस मनुष्य लोक जो ये मृत्यु लोक है मनुष्य लोक पृथ्वी लोक कर्मों के फल को चाहने वाला जो अपने कर्म के फल को चाहता है | देवताओं का पूजन करते हैं |

कर्मों से उत्पन्न होने वाली सिद्धि शीघ्र मिल जाती है |

क्योंकि उनको कर्मों से उत्पन्न होने वाली सिद्धि शीघ्र मिल जाती है |भगवान बोल रहे हैं |कि ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र इन चारों वर्णों का समूह बनाया गया है गुणों के अनुसार गुणों और कर्मों के विभाग पूर्वक मेरे द्वारा रचा गया | जो परमात्मा को अपने तप से और ज्ञान से जान लेता है




पूर्वजों द्वारा सदा से किए जाने वाले कर्मों को ही कर |

पूर्वकाल में मुमुक्षु ने भी इस प्रकार जानकर ही कर्म किए हैं | इसलिए तू भी पूर्वजों द्वारा सदा से किए जाने वाले कर्मों को ही कर | मुझे प्राप्त करने के लिए मोक्ष पाने के लिए तू भी वही जानकर कर्म कर अपने कर्म क्या है | और अकर्म क्या है|

तू अशुभ सेअर्थात कर्म बंधन से मुक्त हो जाएगा |

इस प्रकार इसका निर्णय करने में बुद्धिमान पुरुष भी भी मोहित हो जाते हैं |इसलिए वह कर्म इसलिए वह कर्म तत्व मैं तुझे भली भाति समझाकर कहूंगा | जिसे जानकर तू अशुभ सेअर्थात कर्म बंधन से मुक्त हो जाएगा | सीताराम राधे कृष्णा |



:-जो मुझे वेद आधार मानकर शरण देते हैं?


:-कर्मों की पूर्णता की इच्छा से देवता यहां यज्ञ करते हैं, क्योंकि कर्म से मानव जगत में शीघ्र ही पूर्णता प्राप्त हो जाती है ?


:-देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं


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