योगी पुरुष सुख हो दुख हो सब भोग
योगी पुरुष सुख हो दुख हो सब भोग
प्रभु कहते हैं संपूर्ण प्राणियों के लिए जो रात्रि के समान है उस नित्य ज्ञान स्वरूप परमानंद की प्राप्ति में स्थित प्रग योगी जागता
सीताराम राधे कृष्ण कैसे हैं आप | आशा करता हूं कि घर में सब कुशल मंगल होंगे माता पिता सब ठीक होंगे | सब खुश होंगे सब घर में सुख शांति से होंगे | तो अभी आज हम श्लोक नंबर 69 से अध्याय दो समाप्त करेंगे श्लोक नंबर 72 तक . तो श्लोक नंबर 69 में प्रभु कहते हैं संपूर्ण प्राणियों के लिए जो रात्रि के समान है उस नित्य ज्ञान स्वरूप परमानंद की प्राप्ति में स्थित प्रग योगी जागता और जिस नाशवान जिस नाशवान सांसारिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं परमात्मा के तत्व को जानने वाले मुनि के लिए वह रात्रि के समान है
संपूर्ण प्राणियों के लिए रात्रि समान
हम संपूर्ण प्राणियों के लिए रात्रि समान समझते हैं उस नित्य ज्ञान स्वरूप परमानंद की प्राप्ति के स्थित प्रज्ञा योगी जागता है उसी समय हम सोते हैं उस समय जो नित्य योगी होता है वह उस समय पर जागता है जैसे ब्रह्म काल होते हैं उस समय शुभ होते हैं हमारे सुबह उस समय में वह जागता है और जिस नाशवान सांसारिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं जिस नाशवान मतलब विनाश करने वाले संसार नाशवान सांसारिक सुख जो सुख नाशवान जो सुख प्राप्ति सुख की प्राप्ति के लिए सब प्राणी जागते हैं परमात्मा के तत्व को जानने वाले मुनि के लिए वह रात्रि के समान है मतलब जिस समय पूरे संसार के प्राणी सुख प्राप्ति के लिए जागते हैं उस समय मुनि वह मुनि जो योगी है परमात्मा को के तत्व को जानने के लिए वह उसे रात्रि के समान समझता है
जैसे नदियों के जल सब और से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं वैसे ही सब भोग जिस स्थित प्रज्ञ पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किए बिना ही समा जाते हैं
श्लोक नंबर 70 जैसे नदियों के जल सब और से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं वैसे ही सब भोग जिस स्थित प्रज्ञ पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किए बिना ही समा जाते हैं वह पुरुष परम शांति को प्राप्त होता है
परम शांति को प्राप्त
भोगों को चाहने वाला नहीं जैसे नाना नदियों के जल से सब ओर से परिपूर्ण होता है जैसे समुद्र की नदियों का जल चारों तरफ फैला हुआ होता है अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र के उसको विचलित न करते हुए ही समा जाता है जैसे नदियों का जल सब ओर से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में एक समुद्र में एक समुद्र है समुद्र के अंदर सारी नदियों का जो जल है चारों तरफ से आता है वह बिना विचलित हुए उसमें समा जाते हैं वैसे ही सब भोग जिस स्थित पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किए बिना ही समा जाते हैं जैसे ही सारे भोग जो हम भोगना चाहते हैं सुख बस सुख ही चाहिए दुख नहीं चाहिए सारे भोग वो बिना विकार किसी किसी भी बिना मतलब इच्छा के समा जाते हैं वह पुरुष परम शांति को प्राप्त होता है
शक्ति और धन दौलत
जिसकी कोई इच्छा नहीं होती सुख हो दुख हो क्या हो उसे श्री परमात्मा से मतलब है कोई विकार नहीं किसी के प्रति कोई वैसा स्वभाव नहीं है तो ऐसे पुरुष परम शांति को प्राप्त होते हैं जो भोगों को चाहने वाला है जिसको सिर्फ परमात्मा नहीं चाहिए जिसको सिर्फ पैसा शक्ति और धन दौलत और आप यह बताइए सारे प्रकार के मतलब सुख शांत जितने भी हैं सुख है वह सब चाहिए भोग चाहिए भोग भोगने वाला मतलब आप ये देख लीजिए भोग रस में आप य मान लीजिए पैसा चाहिए गाड़ियां चाहिए हर चीज चाहिए मतलब दुनिया की हर चीज चाहिए भोग जिसमें उसे आराम हो तो वह परम संत शांति को प्राप्त नहीं होता है|
जो पुरुष संपूर्ण कामनाओं को त्याग कर ममता रहित अहंकार रहित और स्प्र रहित हुआ विचार होता है वही शांति को प्राप्त होता है
श्लोक नंबर 71 जो पुरुष संपूर्ण कामनाओं को त्याग कर ममता रहित अहंकार रहित और स्प्र रहित हुआ विचार होता है वही शांति को प्राप्त होता है अर्थात वह शांति को प्राप्त है देखिए कितनी अच्छी बात कही है जो पुरुष संपूर्ण कामनाओं को त्याग कर जो पुरुष संपूर्ण कामनाओं को सारी कामनाएं सब एक जगह अलग सब भोग विलास जितना भी है सब एक साइड कुछ नहीं त्याग कर ममता रहित अहंकार रहित प्रारहित हुआ विचार होता है जो ऐसे विचार रखता है ना ममता रहित ममता अहंकार नहीं होना चाहिए उसका प्रह रहित नहीं होना चाहिए विचार ऐसे विचार रखने वाले प्रात प्राणी ही शांति को प्राप्त होते है
अहंकार कभी भी नहीं करना
अर्थात वही शांति को प्राप्त होते यह बात बिल्कुल सही है देखिए आप भी ममता प्यार ज्यादा किसी को ना करें प्यार करना है तो परमात्मा को करो सबसे ज्यादा जो भी करना है | अहंकार कभी भी नहीं करना चाहिए घमंड कभी जिंदगी में किसी के देखिए किसी भी बात पे आपके पास अगर कुछ भी है ना तो आप घमंड ना करें तो बहुत अच्छा आपकी प्रवृत्ति आपका जो स्वभाव है वह बहुत परिपूर्ण मतलब इतना सुंदर हो जाएगा तो वह प्राणी शांति को प्राप्त होता है |
अध्याय दो इसका श्लोक नंबर 72 है हे अर्जुन यह ब्रह्मा को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति है इसको प्राप्त होकर योगी कभी मोहित नहीं होता और अंत काल में भी इसी ब्रह्म रूपी से ब्रह्मी स्थिति में स्थित होकर ब्रह्मानंद को प्राप्त हो जाता है तो प्रभु कहते हैं श्री कृष्ण जी कहते हैं कि हे अर्जुन यह ब्रह्म को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति है जो ब्रह्म परमात्मा को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति है इस इसको प्राप्त होकर योगी कभी मोहित नहीं होता जो ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है वह कभी किसी पर मोहित नहीं होता है और अंत काल में भी इसी ब्रह्म स्थिति में इसी ब्रह्मी स्थिति में स्थित होकर ब्रह्मानंद को प्राप्त होता और जब उसका उस प्राणी का अंत समय आता है
परमात्मा को याद रखता है
|तब भी वह यह विचार रखता है परमात्मा को याद रखता है तब तक वह ब्रह्म रूपी स्थिति में ही जो हमारी योगी जो इच्छा है अंदर से कि मैं भगवान को मानता हूं और भगवान को ही चाहता हूं सब कुछ करता हूं उनके लिए ही सब कुछ करता हूं और जो कुछ है वही है लेने वाले वो हे प्रभु जो लिया है वो आपका है जो दिया है वो आपका है सब कुछ आप ही का है तो अंत समय पर ब्रह्म को परमात्मा को प्राप्त करने वाली तब वह ब्रह्मा नंदन को प्राप्त हो जाता है तो यहीं पर अध्याय दो श्लोक नंबर 72 समाप्त होता है
श्री सीताराम राधे कृष्ण |
मैं तो चलो ये पढ़ने में परमात्मा को जानने में लगा हुआ हूं के कम से कम एक या दो प्राणी के कान में पहुंच जाए वही बहुत है है तो इसी के साथ मैं आपसे यहीं पर समापन चाहूंगा और प्रार्थना करूंगा कि आपके घर में सब सुख शांति से हो और सब कुछ सुख खुश कुशल मंगल हो हे भगवान इस घर में सब सुख शांति से रखना बस अपने माता-पिता की सेवा करते रहना यही सबसे बड़ा भोग है इस भोग को जो भोग लेता है व जिंदगी भर परमानंद को प्राप्त होता है जो परमात्मा है उन्हीं को प्राप्त होता है | श्री सीताराम राधे कृष्ण |
भोग करने का क्या परिणाम होता है?
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