परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी को |
परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी को
श्रेष्ठ पुरुष जो आचरण करता है
सीताराम राधे कृष्ण कैसे हैं आप सब लोग आशा करता हूं आपके घर में सब सुख शांति से होंगे और के माता पिता सब ठीक होंगे आपके बच्चे सब पूरा परिवार सुखम होगा आप अपने माता पिता की अच्छी सेवा कर रहे होंगे तो हम य गीता के अध्याय तृतीय के श्लोक नंबर 20 तक कल हमने समाप्त किया था आज हम श्लोक नंबर 21 से स्टार्ट करेंगे तो मेरा कहना थोड़ा सा आप इस चीज पर ध्यान दीजिए अपने शास्त्रों पर ध्यान दीजिए और थोड़ा प्रेरित खुद भी होए थोड़ा अपने घर वालों को भी प्रेरित कीजिए कि यह चीज चीज तो नहीं बोल सकते कि यह हमारे शास्त्र है हम यह बोल सकते कम से कम हमें अपने पवित्र शास्त्र को एक एक बार तो अध्ययन करना चाहिए तो श्लोक नंबर 2 में बोलते हैं श्रेष्ठ पुरुष जो आचरण करता है अन्य पुरुष भी वैसे वैसा ही आचरण करते हैं
प्रभु परमात्मा में लगा रहता है
जो श्रेष्ठ पुरुष होता है सबसे बड़ा पुरुष होता है जो अच्छा पुरुष होता है जिसके मन में ना कोई लोभ होता है ना कोई मांगने की इच्छा होती है किसी से कोई मतलब नहीं होता व प्रभु परमात्मा में लगा रहता है वह जो आचरण करता है अन्य पुरुष भी वैसा ही आचरण करते हैं वे भी उसी के पीछे चलते हैं आपने देखा होगा एक एग्जांपल देता हूं वैसे देना नहीं चाहिए उस चीज का जैसे नेता भी पक्ष होता है नेता होते हैं वो पैसा कमाने के लिए कुछ भी कोई नेता मैं किसी की बात नहीं कर रहा कोई भी हो वो पैसा कमाने के लिए जैसा भी वो भाषण देगा तो बस हमारे जो य पब्लिक है यह यह सोचेगी बस यही है सब कुछ दिमाग नहीं लगाना उनके पीछे चलते रहना है
इसमें उल्टा बताया गया इसमें यह बताया गया |जो श्रेष्ठ पुरुष है सर्वमान्य है वह जो तुमको उपदेश देगा तुमको बाकी सभी पुरुष वैसा ही आचरण करते हैं यह तो नेगेटिव एग्जांपल दिया था अबआपको मैं अच्छा एग्जांपल देता हूं हमारे ग्रुप कुल में जो होता है जो श्रेष्ठ गुरुजन होते हैं वो जो जो अपने शिष्य को पढ़ाते हैं मंत्रों उच्चारण कराते हैं बिल्कुल सेम वैसे ही वह उसको दोहराते हैं उच्चारण करते हैं वह जो कुछ प्रमाण कर देता है समस्त स मनुष्य समुदाय उसी के अनुसार बरतने लग जाता है वह जो भी प्रमाण कर देता श्रेष्ठ पुरुष जो भी सिद्ध कर देगा या जो भी चीज जो बात कह देगा समस्त समुदाय जो सच्चा पुरुष होगा जो श्रेष्ठ होगा वह अगर किसी को बोलेगा कि यह चीज सही है और आपको ऐसे जीना चाहिए|
तीनों लोकों में ना तो कुछ कर्तव्य
जैसे गीता में बोला गया है गीता में जीने का सार बताया गया है कि जीवन कैसे व्यतीत करना चाहिए तो उसी हिसाब से जो श्रेष्ठ पुरुष है जो कुछ भी प्रमाण कर देता है जो आचरण करता है समस्त मनुष्य समुदाय जितना भी है जो उसको सुनता है वह उसी के अनुसार बरतने लग जाता है व उसी के साथ रहन सहन करने लग जाता उसी को उच्चारण करने लगता है तब प्रभु कहते हैं हे अर्जुन मुझे इन तीनों लोकों में ना तो कुछ कर्तव्य और न कोई भी प्राप्त करने योग कोई भी प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्य है तो मैं भी तो भी मैं कर्म में ही बरता हूं देखिए कितनी अच्छी बात बोलिए भगवान बोलते हैं श्री कृष्ण जी बोलते हैं कि हे अर्जुन मुझे इन तीनों लोकों में ना तो कोई कर्तव्य है ठीक है कोई कर्तव्य नहीं है और ना कोई भी प्राप्त करने योग्य वस्तु है ना मेरे लिए कोई यहां पर कोई वस्तु है जिसे मैं प्राप्त नहीं कर सकता ठीक है
तब भी वह कर्म कर रहे हैं
तो भी मैं कर्म में ही बरता हूं तो भी मैं अपना काम करता हूं वो तो भगवान है ना परमात्मा है तो उनको तो वो ये बोल रहे हैं कि ना तो देखो इन तीनों लों में ना कोई ऐसी चीज है जिसे मैं प्राप्त नहीं कर सकता सब मेरी बनाई हुई है ना ही मेरा कोई कर्तव्य है ठीक है कुछ भी कर्तव्य नहीं है तब भी वह कर्म कर रहे हैंअर्जुन को उपदेश दे रहे अपना कर्तव्य कर्म कर रहे हैं तो कर्तव्य भी है और जब उनका कोई कुछ है भी नहीं है उनको तो सिर्फ पैदा करना है जीवन साइकिल जो मनुष्य यो चल रही है जैसे जीवन चक्र चल रहा है ब्रह्मा जी ने बनाया उसी को पालन पोषण करना है बस जैसे चल रहा है फिर भी वह अपना कर्म करने के लिए बार-बार धरती पर जन्म लेते रहते हैं
मैं सावधान होकर कर्मों में न बरत तो
तो आप उस चीज का भी तो थोड़ा ध्यान दीजिए कि जब भगवान इस चीज को बोल रहे हैं तो कुछ तो सच्चाई कुछ क्या मेरे को तो सारी ही सच्चाई है फिर कहते हैं क्योंकि हे पार्थ यदि कदाचित मैं सावधान होकर कर्मों में न बरत तो बड़ी हानि हो जाए क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से ही मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं देखिए प्रभु बोले क्योंकि हे पार्थ यदि कदाचित यदि मैं सावधानी ना बरत किसी कर्म को करने से अगर सावधानी नहीं बरता हूं तो बहुत बड़ी हानि हो जाएगी क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं
तो यह सब मनुष्य नष्ट भ्रष्ट हो जाए
क्योंकि कोई भी प्रकार हो मनुष्य लाभ हो हानि हो कुछ भी हो गलत रास्ता हो सही रास्ता हो वो हर प्रकार से मतलब किसी ना किसी प्रकार से अंग्रेज देखो वैसे समझते हैं हम ऐसे समझते हैं कोई और कुछ और समझता है परमात्मा तो है एक ही है ना तो अब यहां पर आने के बाद जैसे भी मतलब विभाजित हुए जैसे भी हुए पर पूछ तो उसी को रहे हैं ना अंतरात्मा तो उसी के पास जा रही है हम ऊपर के मन से कुछ भी नाम ले रहे हैं कोई फर्क नहीं पड़ता है उस चीज से पर जा तो उसी के पास रही रास्ता तो एक ही है तो वो बोलते हैं मार्ग का अनुसरण करता है ठीक है तो अब इसलिए यदि मैं कर्म ना करूं तो यह सब मनुष्य नष्ट भ्रष्ट हो जाए और मैं शकता का करने वाला हूं तथा इस समस्त प्रजा को नष्ट करने वाला बन जाऊंगा |
मैं अपना कर्म सही तरीके से ना करूं तो
प्रभु कहते हैं अगर मैं अपना कर्म सही तरीके से ना करूं तो जितनी भी मनुष्य जाति है जितनी भी मनुष्य जाति सब कुछ पेड़ पौधे हानि यनि सब कुछ सब नष्ट भ्रष्ट हो जाएगा और मैं शकता का करने वाला हो जाऊंगा मतलब उनको नष्ट भ्रष्ट करने वाला मेरे पर इलजाम आ जाएगा उसमें तथा इस समस्त प्रजा को नष्ट करने वाला भी मैं बन जाऊंगा अगर मैं सही कर्म एक ऐसी कर्मा एक ऐसी चीज है जिसको भगवान भी करते हैं अगर वो सही तरीके से नहीं अपनी जगह पर नहीं चलाएंगे मनुष्य को किस तरीके से कैसे चलना है देखिए एक आप ये देखिए जब हमको सुख या दुख आता है रात दिन सब भगवान ने बनाई है सूरज चांद सब बनाया है सब अपोजिट बनाया है हर चीज का उल्टा बनाया सच है तो झूठ है लाभ है तो हानि है दिन है तो रात है स्त्री है तो पुरुष है पुत्र है तो पुत्री है पोता है तो पोती है
जो हमारी प्रथा चलती आ रही है
सब एक दूसरे के बिना दूर है कि नहीं आप खुद सोचिए कोई ऐसा मुझे एक चीज बता दीजिए जिसमें उसका विपरीत ना हो देवता है तो राक्षस है पर जो परमात्मा है उनका उल्टा कोई नहीं मिलेगा वह परमात्मा ही है कोई मिलेगा नहीं मिलेगा अब शास्त्र है तो यह जो जादू टोना करने वाले हैं इनके भी शास्त्र इनके भी पुस्तकें होती हैं वो भी तो एक उसमें आता है सच सच अगर हम कोई सच्चा इंसान है तो झूठा भी सबसे बड़ा मिलेगा आपको इस दुनिया में मिलता है ना तो जो बड़े बुजुर्ग बना गए हैं जो हमारी प्रथा चलती आ रही है हमको उसको थोड़ा सा ध्यान से पढ़ना चाहिए कि उसमें बहुत सच्चाई है मैं बता रहा हूं आपको उस चीज को ध्यान से दे देखना चाहिए तब प्रभु कहते हैं हे भारत कर्म में आसक्त हुए अज्ञानी जन जिस प्रकार कर्म करते हैं आसक्ति रहित विद्वान भी लोक संग्रह करना चाहता हुआ चाहता हुआ उसी प्रकार क कर्म करे |
हे भारत कर्म में आसक्त हुए अज्ञानी
तब प्रभु कहते हैं हे भारत कर्म में आसक्त हुए अज्ञानी जिनको ज्ञान नहीं है जिस प्रकार कर्म करते हैं बिना ज्ञान के गर्भ कर्म करते हैं आ शक्ति रहित विद्वान भी आसक्ति रहित विद्वान भी देखिए जो निर्बलता और निडरता निडरता वाला विद्वान भले ही कितना क्यों ना हो ठीक है कितने विद्वान क्यों ना हो आप चाणक्य को देख लिया अगर उसके अंदर मतलब उसके अंदर करने की करने का सक्षम नहीं होता वो कर नहीं पाते तो क्या वो उनसे बड़ा विद्वान पैदा हुआ कोई कोई नहीं हुआ चण नीति या कुट नीति में तो लोक संग्रह करना चाहता हुआ उसी प्रकार कर्म कर करे परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्र विहित कर्मों में आसक्ति वाले या अज्ञानी हों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में श्रद्धा उत्पन्न करे उत्पन्न ना करे किंतु स्वयं शास्त्र विहित समस्त कर्म भली भाति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवावे जैसे मैं करवाना चाह रहा हूं |
मैं क्षण मात्र भी नहीं हूं मैं तो
आपको इस यही बोला जा रहा है देखिए इसमें यह बोला जा रहा है कि मैं इतना बड़ा मतलब श्रेष्ठ पुरुष तो हूं नहीं कि मैं जो गीता में बताया गया है उसके तो मैं क्षण मात्र भी नहीं हूं मैं तो एक साधारण सा हूं बस मेरे मन की इच्छा की तो मैंने आप आप लोगों को बताना स्टार्ट कर दिया कि जैसे मैं पढ़ रहा हूं मैं थोड़ा सा हिंदी में पढ़ रहा हूं वैसे अनुवाद आपको भी थोड़ा सा करके दिखाए तो इससे क्या हो रहा है कि मैं देखिए मैं कभी मुश्किल से एक आध बार खोल के देखता हूं वो भी अपने दिल की संतुष्टि के लिए कि कितनों ने देख लिया है तो कम से कम पांच से पांच से 20 तक मेरा डेली देख लेते हैं
आपको ऐसी चीजें मिलेंगी
अगर मुझे पैसा कमाने की चाह होती तो मैं तो अपने दोस्तों या वगैरह को सबको बोल देता बोला यार डेली देखा करो या अपने घरमें ही चला के बैठ जाया करता है कि नहीं अगर वैसा होता इसमें वाचिंग टाइमिंग या वैसा होता मेरा वो ऐसा कुछ नहीं है देखिए ये कि इसमें हर आदमी नॉर्मल सा प्लेटफॉर्म है नॉर्मल सा रास्ता है हर आदमी इसको खोलता ही खोलता है बट उसमें अधिकतर आपको ऐसी चीजें मिलेंगी देखने के लिए कि जो हमको नहीं देखनी चाहिए फिर भी देखते हैं पर चलो कोई नहीं पर देखते हैं तो हम भी ये सोचते हैं गलती से हमारा भी खुल जाए उसमें तो कम से कम कुछ ना कुछ तो देखेंगे
अभ्यास बारबार किसी चीज का करने
एक बार नकार दूसरी बार नकार तीसरी बार नकार चौथी बार नकार देखिए बार-बार एक कहावत कही | अभ्यास जन्मत हो सुजन रस्सी से बते सिपर पर निशान तो यह है कि समें य कहा गया है कि करत कर अभ्यास बारबार किसी चीज का करने से और अपना दिल आप मजबूती से उस कर्म को करते हैं और हार जीत की ना परवाह करते हैं तो पत्थर पर भी निशान पड़ जाता है जैसे हम रस्सी पहले कुआ होता था ना तो हम रस्सी से पानी खींचते थे तो उसमें क्या होता था कि रस्सी कितनी कमजोर होती है वो दो मिनट में कट जाएगी पत्थर तो नहीं कटेगा पर जब वही रस्सी बार बार ऊपर नीचे निकालती है तो उससे भी पत्थर कट जाता है
अज्ञान बुद्धिमानी बुद्धि में भ्रमित
थोड़ा सा सनातन धर्म का थोड़ा सा अच्छे से फैले जो हमने बताया हुआ है परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी को पुरुष को पुरुष को चाहिए कि शास्त्र विहित कर्मों में आसक्ति वाली अज्ञान बुद्धिमानी बुद्धि में भ्रमित अर्थात कर्मों से श्रद्धा उत्पन्न ना करे किंतु स्वयं शास्त्र विहित शास्त्रों के द्वारा शास्त्रों में जो लिखा गया है शास्त्रों के अनुकूल कर्म भली भाति करता हुआ उनसे भी वही कर्म कराए जो अपने परिवार जन है उनसे भी वही परिवार जन क्या आप सभी परिवार हो तो मैंने तो परिवार समझ के उसी हिसाब से आपको बताया वास्तव में संपूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों गुणों द्वारा किए जाते हैं तब भी जिसका अंतकरण अहंकार से मोहित हो रहा है ऐसा अज्ञानी मैं करता हूं ऐसा मानता है देखिए अब यह भी इसमें आ गया देखिए भगवान को दोष ना दोष देने वाला कि दुख में भी दोष सुख में भी दोष हर चीज में दोष मतलब हर चीज में यही बोलना है
प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं
हर एक का अलग-अलग सिस्टम है अगर कोई लाभनी हो जाए हे भगवान तूने कर दिया यह सब सुख में अगर वो पैसा दे रहे तो उसको चुपचाप जेब में भरते रहेंगे उस भगवान दे रहा है सुख में भी दे रहे हैं दोष भी उसी को दे रहे हैं भूलते भी उसी को जा रहे हैं ना तो वास्तव में संपूर्ण कर्म सब प्रकार से प्रकृति के गुणों द्वारा किए जाते हैं जो प्रकृति विधि विधान ने जो लिख दिया है आप उसी प्रकार से अपने अपने संपूर्ण कर्म करते जाएंगे तो भी जिसका अंतकरण अंत में अहंकार से मोहित हो रहा ऐसा अज्ञानी पुरुष जो अज्ञानी पुरुष है जो अहंकार र अहंकार में है घमंड करता है अपने आप में तो वह बोलता है कि यह सब परमात्मा कर रहा है मैं करता हूं परमात्मा कर रहा है ऐसा मानता है व हर चीज में तो आज के लिए हम यह श्लोक नंबर 27 पर यहीं पर खत्म करते हैं
कर्तव्य कैसे करने चाहिए
मेरी तो थोड़ा सा थोड़ा-थोड़ा मैं समझ रहा हूं और इसमें जितना जितना घुसते जा रहे तो उतना ही अच्छा और आनंद मतलब मजा आ रहा है बहुत मजा आ रहा है तो आप भी इसका मजा लीजिए हिंदी में भी अनुवाद है और गीता को जो बना दिया गया है श्रीमद् भगवत गीता को कि इसको पढ़ना नहीं चाहिए यह है बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है ये हो जाती है नहीं इसमें जीवन जीने का तरीका बताया आपको कि आपको जीवन कैसे जीना चाहिए आपके कर्म कैसे करने चाहिए कर्तव्य कैसे करने चाहिए धर्म में कैसे होनी चाहिए परमात्मा को आपको याद करना चाहिए ये चीजें बताई गई हैं तो आशा करता हूं कि आप अपने परिवार में परिवार जनों में सब में अच्छे से बात करते रहेंगे और सबको अच्छे से ध्यान रखेंगे अपने माता-पिता की सेवा करेंगे और अपने बच्चों को भी अच्छे संस्कार देंगे उन्हें भी बोलेंगे कि आप आप भी थोड़ा सा अपने शास्त्रों का ध्यान ज्ञान लीजिए | सीताराम राधे कृष्णा |
पूरे विश्व में पूर्ण परमात्मा कौन है?
ऋग्वेद के अनुसार पूर्ण परमात्मा कौन है?
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