शरीर संबंधी कर्म करता हुआ भी पापों को नहीं प्राप्त होता है
शरीर संबंधी कर्म करता हुआ भी पापों को नहीं प्राप्त होता है
सीताराम राधे कृष्ण कैसे हैं | आप सब लोग सभी खुश है | सुख शांति से हैं |परमात्मा को भी याद कर रहे होंगे एक दो को कम से कम कर ही रहे होंगे | कल हमने अध्याय नंबर चार और श्लोक नंबर 20 समापन किया था | श्लोक नंबर 21में भगवान बोलते हैं | जिसका अंतक और इंद्रियों के सहित शरीर जीता हुआ है और जिसने समस्त भोगों की सामग्री का परित्याग कर दिया है ऐसा आसार रहित पुरुष केवल शरीर संबंधी कर्म करता हुआ भी पापों को नहीं प्राप्त होता है
श्लोक नंबर 22 जो बिना इच्छा केअपने आप प्राप्त हुए
| श्लोक नंबर 22 जो बिना इच्छा केअपने आप प्राप्त हुए पदार्थ में सदा संतुष्ट रहता है जिसमें ईर्ष्या का सर्वथाअभाव हो गया हो जो हर्ष शोक आदि से अर्थात सर्वथा अतीत हो गया हो ऐसा सिद्धि और असि में सम रहने वाला कर्म योगी कर्म करता हुआ भी उनसे नहीं बंता है |
श्लोक नंबर 23 जिसकी आसक्ति सर्वता नष्ट हो गई हो
श्लोक नंबर 23 जिसकी आसक्ति सर्वता नष्ट हो गई हो जो देह अभिमान और ममता से रहित हो गया हो जिसका चि निरंतर परमात्मा में ज्ञान में स्थित रहता है ऐसा केवल यज्ञ समापन के लिए कर्म करने वाला मनुष्य के संपूर्ण कर्म भली भाति विलीन हो जाते हैं |
श्लोक नंबर 24 जिसके यज्ञ में अर्पण
श्लोक नंबर 24 जिसके यज्ञ में अर्पण अथवा शुवा आदि भी ब्रह्म है |और हवन किए जाने योग्य द्रव्य भी ब्रह्म है तथा ब्रह्म रूप कर्ता के द्वारा ब्रह्म रूप अग्नि मेंआहुति देना रूप क्रिया भी ब्रह्म है उस ब्रह्म कर्म में स्थित रहने वाला योगी द्वारा प्राप्त किए जाने योग्य फल भी ब्रह्म ही है |सीताराम राधे कृष्ण|
इंद्रियों को जीतने वाला क्या कहलाता है?
शरीर की कौन सी प्रणाली इंद्रियों को नियंत्रित करती है?
व कोन सी पांच इंद्रियां हैं जो शरीर के अंग उनका पता लगाने में मदद करते हैं?
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