क्रोध,गुस्सा बुद्धि का नाश करेगा |
क्रोध,गुस्सा बुद्धि का नाश करेगा |
प्रभु कहते हैं विषयोंका चिंतन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जा हो जाती है
सीताराम राधेकृष्ण आप सभी लोग अच्छे होंगे आपके घर में सब मंगलमय होगा सब खुश होंगे सुख शांति से होंगे श्रीमद् भगवत गीता का श्लोक नंबर 62 से श्लोक नंबर 68 तक पढ़ने की कोशिश करेंगे | प्रभु कहते हैं प्रभु कहते हैं विषयोंका चिंतन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जा हो जाती है आसक्ति हों से उन विषयों की काम उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है
कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध
उन विषयों की जो जिस विषय में वह सोचने लगते हैं उन विषय के चिंतन करने वाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है उन्हीं में पड़ जाता है और आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न करने लगता है मांगना शुरू कर देता है ठीक है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न हो जाता है अगर उसका कामना जो पूर्ण नहीं होती है तो विघ्न मतलब पूरी नहीं होती है पढ़ने से तो व क्रोध में आ जाता है मतलब गुस्सा हो जाता है लाल हो जाता है चाहे वह भगवान क्यों ना हो उनके सामने ठीक है तो यह बात सही है ये आप लोगों ने भी हमने भी देखा है किअगर हम किसी चीज की कामना करते हैं कोई एक व्यक्ति हो ऐसा होता है जो मतलब कि मांगता रहता है भगवान से और वह पूर्ण ना हो और वह क्रोधित ना हो फिर भी वह अपनी आशा पूरी रखता है |
बुद्धि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है |
बाकी सब य बोलते हैं बोला बस यह सब तो ढकोसले बाजी है बस भगवान को हमें देना ही नहीं है मतलब कोसना भी उसी को है मांगना भी उसी से श्लोक नंबर 63 क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव में उत्पन्न हो जाता है क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव में उत्पन्न हो जाता है मूड भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है ठीक है क्रोध से उत्पन्न गुस्से में लाल हो जाएगा स्मृति बुद्धि भ्रम भ्रमित हो जाएगी स्मृति में सोचने की स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है
सोचने समझने की सारी क्षमताएं खत्म
जब आदमी गुस्से में लाल आता है तो उस उसकी सोचने समझने की सारी क्षमताएं खत्म हो जाती है याय आपने भी देखा है वह क्या कर रहा है क्या नहीं कर रहा है इसलिए अपने कोई भी काम करो उसको सोच समझकर कोई भी कार्य करो उसको सोच समझकर समझदारी से पहले एक जगह स्थिर होकर तब उसका हल निकालो ठीक है आप मतलब गुस्से में आ जाए गुस्से से कोई भी चीज मतलब यह नहीं हो सक गुस्से से हमेशा हानि ही होती है नुकसान ही होता है कोई फायदा नहीं होता गुस्से से अगर तुमको उस समय पर कोई फायदा उस चीज का हुआ है तो बाद में उसका उल्टा हो जाता है यह बात आप दिमाग में बिठा लीजिए और बुद्धि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है |
गुस्से को कम करना सीखे
देखिए बुद्धि का नाश हो जाने से जब उसकी सोच मतलब क्रोध उत्पन्न होने से जब ज्यादा गुस्से में आ जाएगा तो उसकी सोचने समझने की ज्ञान शक्ति वगैरह सब जो जो उसने पढ़ाई लिखाई सब कुछ किया वो सब एक साइड हो जाएगी एक साइड रख देता है और बुद्धि का नाश उसकी सोचने समझने की क्षमता खत्म हो जाती है बिल्कुल उस समय के लिए और बुद्धि खत्म होने से यह पुरुष अपनी स्थिति से गिर जाता है स्थिति से मतलब बिल्कुल ही गिर जाएगा कि सोचेगा समझेगा कुछ नहीं कि स्थिति और दूसरों की नजरों में और गिर जाएंगे बोला यार यह तो बहुत ही बेकार आदमी है कि आप एकदम से छोटी-छोटी बात पर गुस्सा कर जाता है तो थोड़ा गुस्से को कम करना सीखे अपने घर में गुस्से को अंदर खुश रहना सीखे कोई क्या बोल रहा है
नकारात्मक शक्ति
कोई कुछ भी बोले कोई क्या करे कैसे करे जब तक आप उसको लोगे नहीं तो वह आपके पास नहीं रहेगा यह बात आप सोचो ठीक है कोई भी चीज अगर आप कोई भी नेगेटिविटी हो नकारात्मक शक्ति हो जब तक आप उसको पलट कर जवाब नहीं दोगे तब तक वह चीज आप पर नहीं आ सकती है मान लीजिए मेरे हाथ में एक किताब है और वह किताब मैं आपको अगर देता हूं और आप नहीं लेते तो वह किताब तो मेरे पर ही रह जाएगी वैसे ही गाली और यह जो ग उल्टी सीधी बा बातें होत हैं बुराइयां होती है यह सब कुछ होता है अगर आप उस पर कोई भी मतलब जवाब नहीं देते उसको अनसुना कर देते हैं तो व उसी को लगती है उसी के पास रह जाती हैयह बात आप सोचि खुद दिमाग से सोचिए कोई भी चीज जब तक आप एक्सेप्ट नहीं करते हो सबसे बड़ा उदाहरण नकारात्मक है
बड़े बुजुर्ग बोल के गए
हमारे बड़े बुजुर्ग बोल के गए हैं कि जब तक नकारात्मक शक्ति को आप जवाब नहीं देते व अपनी और आपको खींचती है प्रेरित करती है जब तक आप घूम कर देखते नहीं हो या या प्रे पलट कर कोई जवाब नहीं देखते हो तब तक वह आप पर हावी मतलब हावी नहीं होती है वैसे ही यह है कि आप अगर अपना स्वभाव इतना ऐसा रखेंगे कि दूसरे के प्रति यह ना रखें मतलब यह कि ज्यादा यह म सोच दिल साफ रखिए पैसा कमाइए मना नहीं है कोई कोई दिक्कत नहीं है अपने घर में सुख शांति रखिए सब यह है पर थोड़ा जो देने वाला है |
अंत करण वाला साधक जो अपनी कामनाओं को बांध कर रखने वाला साधक
उसको भी याद रखिए आप सुख में तो आप याद रखते हैं पर दुख में दुख में याद रखते हैं पर सुख में तो कोई भी याद नहीं करता बहुत मुश्किल से करता है खाना पूर्ती करके बैठ जाते हैं परंतु अपने अधीन किए हुए अंत करण वाला साधक अपने वस में की हुई राग द्वेष से रहित इंद्रियों द्वारा विषयो में विचरण करते हुआ अंत करण की प्रसंता को प्राप्त होता है देखिए कितनी अच्छी बात है परंतु जो अपने अधीन किए हुए अंत करण वाला साधक जो अपनी कामनाओं को बांध कर रखने वाला साधक मतलब जो साधु मान या अंदर से शांत स्वभाव रहने वाला अपने बस में की हुई अपने अंदर अपने बस में कंट्रोल में की हुई राग द्वेष से रहित इंद्रियों मतलब मन को इंद्रियों को विषव में विचरण करता हुआ
अंत में प्रसन्नता को ही प्राप्त होता है
अंत करण की अंत में प्रसन्नता को ही प्राप्त होता है प्रसन्नता ही मिलती है उसको अगर वह हमेशा दूसरे से खुश रहता है तो उसे उसको देर भले हो जाए पर हमेशा खुश ही रहेगा श्लोक नंबर 65 अंत करणी की प्रसन्नता होने पर इसके संपूर्ण दुखों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्न चित्त वाले कर्म योगी को बुद्धि शीघ्र ही सब ओर से हटकर एक परमात्मा में ही भली भाति स्थिर हो जाती है श्री कृष्ण जी कहते हैं अर्जुन जी से कि हे अर्जुन अंतक की प्रसन्नता होने पर सब कुछ भूलकर खुश रहने से इसके संपूर्ण दुखों का आभाव हो जाता है संपूर्ण दुख चले जाते हैं और उस प्रसन्न चित्त वाले कर्म योगी को जो कर्म योगी है जो खुश रहकर काम करने वाला पुरुष है
परमात्मा में लीन हो जाती है
बुद्धि शीघ्र ही सब ओर से हटकर परमात्मा में लीन हो जाती है परमात्मा को मतलब भली भाति स्त्री हो जाती है श्री परमात्मा में ही भली भाति स्त्री हो जाती है मेरा कहने का मतलब यह है कि कम से कम आप शुरू तो कीजिए अगर आप परमात्मा को समझने की कोशिश ही नहीं करोगे कि क्या है क्या नहीं है तो आप पहले ही बनी बनाई बातों से यह सोचना स्टार्ट कर दोगे कि हां यार इनसे बुद्धि भ्रष्ट हो जाएगी वोह हो जाएगी आप एक चीज तो सोचो कि भेजने वाला वो है बुद्धि भ्रष्ट करने वाला वो है उन्होंने हमको क्या इच्छा शक्ति दी है कि तुम अपनी इच्छा से परमात्मा को प्राप्त करो वरना कराने को तो वह हमसे बहुत कुछ करा सकते हैं
ज्ञान प्राप्त करके सिद्धि प्राप्त
हमको ज्ञान इतना दिया है कि अगर इंसान ज्ञान पा ले तो पहले ऋषि मुनियों को इतना ज्ञान होता था कि आज के साइंटिस्ट को इतना ज्ञान नहीं है कि उन्होंने ऐसी ऐसी खोज की हुई थी समझ रहे हैं आप तो पहले जो ऋषि मुनि होते थे वो पहले जो साइंटिस्ट हो थे वो उनकी कैटेगरी वाइज में होते थे कोई साइंटिस्ट हो गया कोई अर्थशास्त्री हो गया और कोई आपका आयुर्वेद में हो गया वैद्य हो गया और आपका कोई किसी और विषय में हो गया तो उन्होंने बहुत दूर दूर तक सोच के ज्ञान प्राप्त करके सिद्धि प्राप्त करके अपना सोच के यह सब किया है ऋषि मुनि वो नहीं है जो मांगते फिरते हैं आप जो लोग हम हमारे जो हमको समझाया गया है कि यह साधु संत हैं यह सब मांगते फिरते हैं ऐसा नहीं है वह सन्यासी होते हैं जो बिल्कुल ही दुनिया से सन्यास ले लेते हैं उन्हें कोई मतलब ही नहीं होता जहां से मिली मैं खा लिया जहां से नहीं मिली नहीं खाया|
श्री कृष्ण जी कहते हैं कि हे अर्जुन न जीते हुए मन मन को ना जीतने वाले पुरुष को इंद्रियों वाले और इंद्रियों को ना जीतने वाले पुरुष को जो मन के वस में रहता है
श्लोक नंबर 66 न जीते हुए मन और इंद्रियों वाले पुरुष में निश्चय आत्मिका बुद्धि नहीं होती और उस आयुक्त मनुष्य के अंतक में भावना भी नहीं होती अंत कण आप समझते हैं अंत कण जो हमारे अंदर है आत्मा बोल दीजिए अंतरात्मा बोल दीजिए जीवात्मा बोल दीजिए सोचने समझने की इच्छा शक्ति को आप किसी भी प्रकार से आप मतलब जैसे आप सोच सक भावना हीन मनुष्य को शांति नहीं मिलती है और शांति रहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है देखिए कितनी अच्छी बात कही है
मन को ना जीतने वाले पुरुष
श्री कृष्ण जी कहते हैं कि हे अर्जुन न जीते हुए मन को ना जीतने वाले पुरुष को इंद्रियों वाले और इंद्रियों को ना जीतने वाले पुरुष को जो मन के वस में रहता है और अपनी इंद्रियों के वश में रहता है निश्चय मत का बुद्धि नहीं होती उनमें कभी सोचने समझने की क्षमता नहीं होती और उस आयुक्त मनुष्य के अंत करण में भावना भी नहीं होती मतलब उसके अंदर भावना भी नहीं होती किसी के प्रति प्रेम नहीं होगा कुछ नहीं होगा बस उसे अपने काम से काम मतलब होगा तो तेरा काम हो गया एग्जांपल ले लीजिए डाकू बस उसको क्या डकती डालनी है व चाहे किसी को मारे काटे कुछ भी करे उदाहरण के तौर पर बताया मैंने वैसे नहीं बता रहा हूं कि जो होते किसी का बुरा करना चाहि उनका काम ये है कि बस किसी को मारो उनका पेट भरना चाहिए बस ये मतलब होना चाहिए
भावना खत्म हो जाती है
भावना खत्म हो जाती है नहीं आती तथा भावना हीन मनुष्य को शांति नहीं मिलती कितनी अच्छी बात है कि जिसके अंदर भावना ही नहीं होगी स्वभाव दूसरे के प्रति अच्छा नहीं होगा तो उस मनुष्य के अंदर शांति कभी नहीं होती उसे शांति नहीं मिलती है और शांति रहित जिसको शांति नहीं मिलती मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है वह हमेशा दुखी ही रहेगा चाहे उस पर कितना पैसा आ जाए कितना ही कुछ भी आ जाए वह हमेशा दुखी रहेगा चिड़चिड़ा इंसान जो होगा जो दूसरे से जलने वाला होगा और जिसमें बुद्धि का प्रयोग नहीं करेगा जो अपने मन को मन के वश में रहेगा इंद्रियों के वश में रहेगा |
जो भावना हीन होता मतलब भावना ही खत्म हो जाती है तो उसको शांति नहीं मिलती
तो इसमें सीधा सच्चा यह बताया गया कि हे अर्जुन जो अपने मन के वश में रहता है इंद्रियों के वश में रहता है उसकी बुद्धि नष्ट हो जा है और अंत करण में भावना नहीं होती किसी के प्रति व भावना रहित हो जाता है तथा भा जिसको जिस में भा जो भावना हीन होता मतलब भावना ही खत्म हो जाती है तो उसको शांति नहीं मिलती अंदर ही अंदर घुटता रहता है और शांति नहीं मिलने से वह गुस्से में आना स्टार्ट हो जाता है तो शांति रहित व्यक्ति को मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है
जल में चलने वाली नाव को वायु हर लेती
श्लोक नंबर 67 जैसे जल में चलने वाली नाव को वायु हर लेती वैसे ही विषयों में विच विचर हुई इंद्रियों में से मन जिस इंद्रिय के साथ रहता है वह एक ही इंद्रिया इस आयुक्त पुरुष की बुद्धि को हर लेती है देखिए कितनी अच्छी बात कही है कहा है कि श्री कृष्ण जी बोलते हैं कि हे अर्जुन क्योंकि जैसे जल में चलने वाली नाव को वायु हर लेती है जैसे कोई नाव समुद्र की ओर में जा रही है और तेज हवा या तूफान चलता है तो वह उसको डुबा लेती है ठीक है आप समझ रहे हैं ना हवा के सहारे ही तो नाव चलती है पहले जैसे जो बड़े-बड़े जहाज होते थे कि वो है और एक उदाहरण यह भी है कि तूफान आ गया तो तूफान डुबा देती है तो सारा तो वायु का ही प्रभाव है उसमें तो जल में चलने वाली नाव को वायु हर लेती है वैसे ही विषयों में उसी प्रकार के विषयों में मतलब चरती हुई इंद्रियों में से मन जिस इंद्रिय के साथ रहता है अब जितनी हमारी इंद्रिया है उनमें मन जिस इंद्रिय के साथ रहता है वह ही वह एक ही इंद्रिय इस आयुक्त पुरुष की बुद्धि खत्म कर देती है यह तो आपको भी पता है कि मन जिस साइड हो गया तो वो तो बुद्धि खत्म होनी होनी है
सोच समझकर कार्य करता है
उस श्लोक नंबर 68 इसलिए हे महा भाव जिस पुरुष की इंद्रिया इंद्रियों के विषयों से सब प्रकार निग्रह की हुई हो उसी की बुद्धि स्थिर है मतलब श्री कृष्ण जी कहते हैं कि हे अर्जुन इसीलिए हे महाबाहु उनका एक नाम भी है कि जिस पु उसकी इंद्रिया उसके खुद के वस में रहती है सब प्रकार से निग्रह होती है निग्रह मतलब निगरानी के अंदर होती है वह अपने बस में रखता है उसी की सोच हमेशा एक जगह रहती है वह सोच समझकर कार्य करता है तो इसी के साथ हम यह समाप्त करें आज का गीता का अध्याय दो का श्लोक नंबर 68 तक हम समाप्त कर करते हैं
मां-बाप का नाम लीजिए
आशा करते हैं कि आप के घर में सब सुख शांति हो सब मंगलमय हो सब खुश रहे जो आपसे अंदर ही अंदर जल रहे हैं द्वेष भावना रखते हैं वो खुद नीचे चले जाएंगे चाहे उनके पास पैसा कितना भी क्यों ना हो भक्ति जब भी आपको समय मिले भक्ति कीजिए नाम लीजिए राम नाम लीजिए राधा नाम लीजिए सीताराम नाम लीजिए जो आपको अच्छा लगे अपने मां-बाप का नाम लीजिए माता-पिता का नाम लेंगे वह सबसे अच्छा है एक आपको जाते जाते मैं एक अच्छी चीज बताता हूं आप थोड़ा सा ध्यान दीजिएगा कि अगर आप सोते समय अपने जो सर के नीचे पिल्लो लगाते हैं और उस पर सिर्फ यह लिखते हैं
सीताराम राधे कृष्ण
मां उस इंसान को कभी गलत सपने नहीं आते आप ये आप यह मतलब एक बार करके देखिए मैं तो मैं तो कर ही रहा हूं आप करके देखिए यह चीज बहुत अच्छी बात है क्योंकि मां वर्ड का इतना भाव है कि उसको कभी गलत सपने नहीं आ सकते तो आज का यह अध्याय हम यही अध्याय दो का श्लोक नंबर 62 से श्लोक नंबर 68 तक के लिए अभी हम समाप्त करते हैं और आपसे हाथ जोड़कर विनती करते हैं कि अपने घर में सुख सुख से रहिए शांति से रहिए और अपने माता-पिता का ध्यान रखिए अपने भी पति पत्नी आपस में एक दूसरे का ध्यान रखिए और अपने बच्चों का ध्यान रखिए बस द्वेष भावना किसी के प्रति मत रखिए खुश रहिए हमेशा भगवान को ध्यान याद रखिए और जितना ज्यादा हो सके तो यह ग्रंथ को हमारे जो हमारे ग्रंथ है उनको पढ़ना सीखिए थोड़ा जानकारी लेना सीखिए दुनिया क्या बोलती है क्या नहीं बोलती है अभी कुछ लोग बोलते हैं आज्ञा दीजिए सीताराम राधे कृष्ण
गीता में क्रोध के बारे में क्या लिखा है?
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