परमात्मा भक्ति अगर हो तो परमात्मा में लीन करने के लिए होनी चाहिए
परमात्मा भक्ति अगर हो तो परमात्मा में लीन करने के लिए होनी चाहिए
सीताराम राधे कृष्ण
सीताराम राधे कृष्ण मेरी आपसे बस यही प्रार्थना है कि आप अपने माता-पिता की सेवा करें अच्छे से ठीक है तो माता-पिता की सेवा जैसे आप माता-पिता की सेवा करेंगे तो वही फल आपको मिलेगा और माता-पिता के ही चरणों में सब कुछ होता है यह भी आप जानते हैं भली बातें जानते हैं पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो इस बात को भूल जाते हैं जैसे कि देखिए मेरे मेरे हिसाब से तो हमसे जो बड़े हैं बुजुर्ग हैं माता-पिता तो चलो वोह स्वर्ग के स्वर्ग हैं हमारे लिए ठीक है और सबसे बड़ी बात यह है कि पिता कुछ भी हो जिस संतान के ऊपर पिता का वृक्ष जैसी छाया और सर माता का हाथ ना हो जो खाना खिलाने लायक हो तो वह संतान खुश में नहीं रह सकती यह उसी को पता है जिसके माता-पिता नहीं होते इसलिए अपने माता-पिता का ध्यान रखें क्योंकि देखिए आप आपको मैं एक उदाहरण देता हूं कि मां और बाप क्या चीज होते हैं मां बोलते हैं हमारा मुह खुल जाता है तो मां चुप रहती है मगर बाप अगर आप बोलोगे तो बाप में हमारे होठ दोनों बंद हो जाते हैं पर वो हमारे भविष्य को सुधारने के लिए खुलते हैं आपको यह नहीं पता है बस आपको यह पता है कि जो भी संतान यह सोचती है कि बचपन में कि मेरे माता-पिता या मेरे पिताजी मुझे डांटते हैं और मुझसे प्यार नहीं करते बस पढ़ाते रहते हैं यह सब कुछ करते हैं यह चीज जब आप मां बाप बनोगे तब आपको पता चलेगी ठीक है और दूसरा यह है कि बाप जो होता है ना बाप आपके एक ऐसा वृक्ष होता है जो कितनी भी आंधी तूफान कुछ भी आए वह अपने अंदर समेट के रखता है पर अपने बालक और अपने बच्चे और अपनी संतान के ऊपर कभी नहीं आने देता है मां एक ऐसी होती है जो कभी भी आपका पेट भूखा नहीं रखने देगी चाहे खुद का निवाला अपने मुंह में मां बाप से बढ़कर इस दुनिया में कोई है कोई नहीं है तो यह तो भगवान श्री राम भी कह गए हैं उन्होंने श्री लक्ष्मण जी से कहा था रामायण में जब लक्ष्मण जी ने कहा जब बनवास दे और लक्ष्मण जी ने कहा कि आप पिताजी के विरोध में खड़े हो जाइए और मैं सारी सेना को लेकर आपके साथ चलता हूं तब उन्होंने कहा था श्री राम जी बोले कि हे लक्ष्मण पिता चाहे कितना ही दुष्ट क्यों ना हो हमारे पिता तो फिर भी भगवान समान है पिता चाही कितना भी दुष्ट क्यों ना हो उनसे बढ़कर इस दुनिया में क्यों नहीं हो सक कोई नहीं हो सकता क्यों नहीं हो सकता क्योंकि उन्हीं के कारण हम आज इस जगह इस जगह पर हैं इस पृथ्वी लोक पर हैं अगर वह पिता ना होते तो हम भी नहीं होते तो पिता हमेशा समान्य माता-पिता हमेशा समान्य होता है
कृष्ण जी बोलते हैं हे धनंजय तू सम बुद्धि एक समान एक जगह एक जगह रखकर सम बुद्धि ही रक्षा का उपाय ढूंढ
तो प्रारंभ करते हैं राधे कृष्ण श्लोक नंबर 49 इस समत्व रूप बुद्धि योग से सकाम कर्म अत्यंत हीन निम्र श्रेणी का है इसलिए हे धनंजय तू सं बुद्धि में ही रक्षा का उपाय ढूंढ अर्थात बुद्धि योग का बुद्धि योग का ही आश्रय ग्रहण कर क्योंकि फल के हेतु बनने वाले अत्यंत दीन है ठीक है तो श्री कृष्ण जी कहते हैं कि समत्व रूप बुद्धि योग से सकाम कर्म अत्यंत ही निम्र श्रेणी का होता है वो बहुत निम्र श्रेणी का काम होता है अगर हम बिल्कुल सब समस्त स बुद्धि योग से काम लेते हैं तो ठीक है और इसीलिए हे धनंजय तू सम बुद्धि एक समान एक जगह एक जगह रखकर सम बुद्धि ही रक्षा का उपाय ढूंढ अर्थात बुद्धि योग का ही आश्रय ग्रहण कर बुद्धि योग अपनी सोच अपना जो दिमाग है अपनी सोच का ही आश्रय ले आश्रय मतलब ग्रहण आश्रय ग्रहण कर मतलब उसको सोच को ही सोचना है क्योंकि फल के हेतु बनने मतलब अगर फल हेतु बनने वाले अत्यंत ीन है अगर फल बन जाता है तो क्योंकि फल के हेतु बनने वाले अत्यंत दीन होते हैं दीन है ीन है जब फल पक जाता है तो फिर उसके पास कोई उपाय नहीं होता कच्चा फल होता है तो हम उसके जब फल उगना स्टार्ट होता है तो हम उससे कुछ किसी भी आकार में कैसे भी कुछ भी आजकल तो टेक्नोलॉजी भी इतनी आ गई है तब तक वह अपनी लाइफ थोड़ी जीता है पर जब फल पक जाता है तो फल को भी पता रहता है कि कब वह डाल से टपक कर नीचे गिर जाएगा और वह ग्रहण कर लिया जाएगा श्लोक नंबर 50 सम बुद्धि युक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है सम बुद्धि जो समझदार बुद्धि समझदार जो समझदार प्राणी है वह वह पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है क्योंकि यह मृत्यु लोक है जो निवारण होता है आपका वह आगे जाकर होता है अर्थात उनसे मुक्त हो जा हो जाता है अर्थात मतलब उनसे मुक्त हो जाते हैं इसे तू समत रूप योग में लग जा यह संत रूप योग ही कर्मों में कुशलता है
तू अपने कर्म कर्मों में ही लग जा
अर्थात कर्म बंधन से छूटने का उपाय है इसलिए तू अपने कर्म कर्मों में ही लग जा जो कर्म से बंधन जो बंधन जो का जो बंधन रिश्ते के बंधन बांधते हैं वो उनका उपाय है सबसे कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्म बंधन से छूटने का उपाय है अच्छे कार्य करोगे तो अच्छा ही फल मिलेगा श्लोक नंबर 51 क्योंकि सम बुद्धि से युक्त ज्ञानी जन कर्म कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को त्याग कर जन्म रूप बंधन से मुक्त हो निर्विकार परम पद को प्राप्त हो जाते हैं क्योंकि सम बुद्धि से युक्त ज्ञानी जन कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को त्याग कर अच्छा देखिए यह क्या बोले इसमें बोले प्रभु बोलते हैं कृष्ण जी बोलते हैं कि हे अर्जुन क्योंकि सम बुद्धि जो समाज सम बुद्धि वाले लोग होते हैं जो ज्ञानी जन होते हैं ज्ञानी योग होते हैं कर्मों के जो उनके कर्मों का भी फल मिलता है कर्मों से उत्पन्न होने वाले फल को भी त्याग कर जन्म रूप बंधन जो जन्म मरण जन्म रूप बंधन से भी मुक्त हो निर्विकार निर्विकार मतलब जिनका कोई आकार नहीं होता निर्विकार होकर परमात्मा में परम पद को प्राप्त हो जाते हैं परमात्मा में लीन हो जाते हैं
परमात्मा भक्ति अगर हो तो परमात्मा में लीन करने के लिए होनी चाहिए
श्लोक नंबर 52 परमात्मा भक्ति अगर हो तो परमात्मा में लीन करने के लिए होनी चाहिए एक अंदर से वैसे हमारे अंदर से आती है एक इच्छा निकलती है पर क्या होता है देखिए एक मैं आपको बीच में से एक चीज बता देता हूं कि सतयुग में क्या होता था कि सतयुग में आप जो लोग रहते थे उनमें कोई द्वेष भावना नहीं होती थी ठीक है सब सब एक साथ रहते थे एकजुट मिलकर रहते थे कोई गर गरीब नहीं कोई अमीर नहीं शांत बिल्कुल स्वभाव हमेशा भक्ति ही में लगे रहना भक्ति में लगे रहना वह उनकी आयु वह देह जो अपना देह था वो जो शरीर था वह अपना देह अपने इच्छा अनुसार त्याग सकते थे ठीक तो उसी के बाद जो फिर त्रेता युग आया त्रेता युग में आपने देखिए .उसी उसी प्रकार से कम होता चला गया है ना तो उस सतयुग में के टाइम पर जो इंसान और राक्षस जो होते थे वह अलग-अलग लोक में रहते थे और द्वापर युग में जैसे त्रेता युग में इंसान और राक्षस मतलब देवता इंसान और राक्षस एक ही इंसान मतलब एक ही लोक में रहते थे जो मृत्यु लोक है द्वापर युग जैसे आया उसमें एक ही परिवार के अंदर राक्षस और देव रहते थे देव का मतलब मेरा यह है कि देव की सोच रखने वाले इंसान जो होते थे जो भगवान को परमात्मा को मानने वाले होते थे भगवान ने तो यहां अवतार लिए हैं मनुष्य रूप में बट मैं उनके जैसे युधिष्ठिर जी थे वो अपनी सोच कभी व झूठ नहीं बोलते थे तो उसी में आप देख लीजिए जैसे कि अर्जुन युधिष्ठिर जी हो गए और दुर्योधन हो गए वो एक ही परिवार में होते थे आप पितामह जी भी ले सकते भीष्म पितामह जी ले सकते अब कलयुग है तो कलयुग में कितनी मजे की बात है कि एक ही इंसान के अंदर राक्षस भी है और देवता भी है के मतलब वो जैसे ही उसकी थोड़ी सी अच्छाई उठती है है तोव राक्षस उसको नीचे दबा देता है जो काली पुरुष होता है और जो उस परे मतलब अभी जैसे मेरे मन की इच्छा हुई थी कि मैंने मैंने किसी से पूछा नहीं कि मुझे करना क्या सोचेगा कोई क्या करना है मुझे बस पढ़ना है भागवत मेरे पास समय है और मैं समय निकालता हूं अपना पूरा समय निकालता हूं और यह समय ही समय है भगवान के लिए हमारे पास में समय ही समय है तो समय निकालता हूं तो अब आप यह देख लीजिए कैसे जाता है अभी कलयुग है आपको मैं एक और उदाहरण देता हूं आपको कलयुग 432000 वर्ष का है जिसमें से 4000 वर्ष हुए हैं आप उसी हिसाब से उसमें 432000 वर्ष जोड़ते चले जाइए आपको हर युग की आयु पता चलती चली जाएगी कि कौन सा युग कितने साल का था
परमात्मा में अचल और स्थिर ठहर जाएगी
हम जितना भी चाहे जितना ज्ञान हम जो हमारे पुराने हजारों साल पुराने ग्रंथ हैं हम उन हमें उनको पढ़ना चाहिए उसमें क्या है कि हमको पता चलता है कि क्या है वरना हम यहीं के यहीं फस के रह जाते हैं हर जगह चलिए अभी बीच में ये मैंने थोड़ा सा स्लोगन टाइप का दे दिया था बता दिया था थोड़ा-थोड़ा पता होना चाहिए कि जिससे कि तो आप आप लोग मुझे कमेंट नहीं करके बताते हो कि हां कहां पर क्या है कैसे है सही है सही कर रहा हूं या गलत कर रहा हूं यह थोड़ा सा बता दीजिए है ना श्लोक नंबर 53 भाति भाती के वचनों को सुनने से विचलित हुई तेरी बुद्धि जब परमात्मा में अचल और स्थिर ठहर जाएगी मतलब भाति भाति अलग-अलग प्रकार के वचन वाणी को अलग-अलग प्रकार के वचनों को सुन सुनने से विचलित विचलित होना मतलब आप इधर-उधर घबरा जाना घबरा घबराते हुए तेरी बुद्धि जब परमात्मा में अचल और स्थिर ठहर जाएगी जब तेरी बुद्धि एक बार परमात्मा पर टिक जाएगी स्थिर हो जाएगी तब तू योग को प्राप्त हो जाएगा तब तू योग को प्राप्त हो जाएगा अर्थात तेरा परमात्मा से नित्य संयोग हो जाएगा
अर्जुन बोले हे केशव समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिर बु बुद्धिपुरुष का क्या लक्षण है
अर्थात तब तू परमात्मा को देख सकेगा संयोग हो जाएगा मिलन हो जाएगा अर्जुनवाच अर्जुन बोले हे केशव समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिर बु बुद्धिपुरुष का क्या लक्षण है वह स्थिर बुद्धि पुरुष कैसे बोलता है और कैसे बैठता है और कैसे चलता है इसमें बोलते हैं अर्जुन जी पूछते हैं अभी अर्जुन उवा चलता है तो अब अर्जुन जी पूछते हैं कि हे केशव समाधि में स्थित परमात्मा को प्राप्त हुए स्थिर बुद्धि पुरुष का क्या लक्षण है मतलब कि जो समाधि में लीन हो गया है परमात्मा के लिए स्थिर बुद्धि जो परमात्मा के लिए एक जगह उसने अपनी जैसे किसी ने समाधि ले ली है सिर्फ परमात्मा के लिए पुरुष का क्या लक्षण होता है उनका क्या लक्षण होता है वह स्थिर बुद्धि पुरुष कैसे बोलता है पूछ रहे हैं मतलब क्या उसका मतलब अलग व्यवहार होता है क्या होता है कैसे बैठता है कैसे चलता है तो आज का अध्याय अध्याय दो का श्लोक नंबर 54 पर समाप्त करते हैं बाकी हम कल शुरुआत करेंगे तो इसी के साथ मैं आपसे प्रार्थना करूंगा कि अपने माता-पिता की सेवा करें किसी के साथ बुरा ना सोचे कभी कोई कभी भी कोई गलत सोच अपने दिमाग में ना रखें किसी के साथ कभी कोई हमसे ऊपर भी जा रहा है कोई दिक्कत नहीं है कोई प्रॉब्लम नहीं है बस कभी किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए हमेशा सबका अच्छा सोचना चाहिए आप किसी का बुरा नहीं सोचोगे तो आपके साथ कभी कोई बुरा नहीं होगा सीताराम राधे कृष्ण
स्थिर मन वाले व्यक्ति को क्या कहा जाता है?
गीता के अनुसार स्थितप्रज्ञ क्या है?
स्थिर बुद्धि वाले मनुष्य के क्या लक्षण हैं?
स्थितप्रज्ञा कैसे प्राप्त करें?
स्थितप्रज्ञ का संदेश किसका है?
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