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कर्मों के केवल त्याग मात्र जो कर्मों का त्याग कर देते हैं
कर्मों के केवल त्याग मात्र जो कर्मों का त्याग कर देते हैं
कर्मों के केवल त्याग मात्र जो कर्मों का त्याग कर देते हैं
अर्जुन बोलते हैं जनार्दन हे श्री कृष्ण यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है
सीताराम राधे कृष्ण कैसे हैं आप आशा करता हूं कि आपके घर में सब सुख होंगे और आप भी कुशल मंगल होंगे सब प्रभु की छाया आपके ऊपर होगी और आप अपने माता-पिता की अच्छे से सेवा कर रहे होंगे देखिए कल हमने अध्याय दो समाप्त किया आज तृतीय अध्याय हम आरंभ करेंगे श्लोक नंबर एक से |
भयंकर कर्म
अर्जुन बोलते हैं अर्जुन बोले हे जनार्दन यदि आपको को कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है तो फिर हे केशव मुझे भयंकर कर्म में क्यों लगाते हो अर्जुन बोल रहे हैं कि हे जनार्दन हे श्री कृष्ण यदि आपको कर्म की अपेक्षा ज्ञान श्रेष्ठ मान्य है अगर कर्म कार्य के अपेक्षा कार्य के बराबर में ज्यादा आपको अगर ज्ञान मान्य है तो | हे केशव मुझे भयंकर कर्म में क्यों लगा रहे हैं तो फिर इस कार्य में आप इस भयंकर कार्य में मुझे क्यों लगा रहे है
मेरी बुद्धि को मानो
तब आप मिले हुए से वचनों से मेरी बुद्धि को मानो मोहित कर रहे हैं इसलिए उस एक बात को निश्चित करके कहिए जिससे मैं कल्याण को प्राप्त हो जाऊ |तब भगवान श्री कृष्ण बोलते हैं हे निष्पाप इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा पहले कही गई है उनमें से संख्या योगियों की निष्ठा तो ज्ञान योग से और योग्यं की निष्ठा कर्म योग से होती है
भगवान श्री कृष्ण बोलते हैं कि हे निष्पाप , (जो पापी ना हो ) इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा पहले भी कही गई है
भगवान श्री कृष्ण बोलते हैं कि हे निष्पाप , (जो पापी ना हो ) इस लोक में दो प्रकार की निष्ठा मेरे द्वारा पहले भी कही गई है पहले भी दो प्रकार की निष्ठा कही गई हैं उनमें से संख्या योग्यं की निष्ठा तो ज्ञान योगियों से नंबर दो और ज्ञान योगियों से और योगियों की निष्ठा कर्म योग से होती है मतलब संख्या योग्य की निष्ठा तो ज्ञान योग और ज्ञान योग योग की निष्ठा कर्म योग से होती है अभी इसमें बताया गया है नंबर एक साधना की परिपक्व अवस्था अर्थात पराकाष्ठा का नाम ही निष्ठा है |
मेरी निष्ठा है भाव है
उनके प्रति मेरी निष्ठा है भाव है तो साधना की परिपक्व अवस्था अर्थात पराकाष्ठा का नाम ही निष्ठा है नंबर दो माया से उत्पन्न हुए संपूर्ण गुण ही गुणों में बरतते हैं ऐसे समझकर तथा मन इंद्रिया और शरीर द्वारा होने वाले संपूर्ण क्रियाओं में कर्ता के अभिमान से रहित होकर सर्वव्यापी सच्चिदानंदन परमात्मा में एक भाव से स्थित रहने का नाम ज्ञान योग है इसको सन्यास संख्या योग आदि नामों से कहा गया है
माया से उत्पन्न हुए संपूर्ण गुणों
ठीक है माया से उत्पन्न हुए संपूर्ण गुणों ही गुणों में बरतते हैं माया से जो उत्पन्न गुण होते हैं वही संपूर्ण गुणों में बदलाव बदल जाते हैं ऐसा समझकर तथा मन इंद्रिया और शरीर द्वारा होने वाली संपूर्ण क्रियाओ शरीर द्वारा होने वाली जितने भी मन इंद्रिया और शरीर से होने वाली जितनी भी क्रियाएं हैं क्रियाओं में अभिमान रहित होकर कभी भी किसी क्रिया पर कोई भी कार्य है कुछ भी है उसमें कभी अभिमान नहीं करना चाहिए सर्वव्यापी सच्चिदानंदन परमात्मा में एक ही भाव से स्थित रहना चाहिए और ऐसे स्थित एक ही भाव में परमात्मा से स्थित रहने वाले व्यक्ति को ही ज्ञान रहने वाले व्यक्ति को ही ज्ञान योग कहा गया है इसी को सन्यास भी कहा गया है इसी को संख्या योग भी कहा गया है आदि नाम से कहा गया है
कर्म के नाम कर्म करने का नाम निष्काम कर्म योग है
नंबर तीन ,फल और आसक्ति को त्याग कर भगवत ज्ञान अनुसार केवल भगवद अर्थ समत्व बुद्धि से कर्म के नाम कर्म करने का नाम निष्काम कर्म योग है फल और आसक्ति को त्याग कर भगवत अनुसार फल और फल की इच्छा किए बिना आसक्ति कोई फल की इच्छा कोई आदमी कर्म करता है फल के लिए करता है देखो सभी करते हैं सबकी इच्छा यही होती है कि मैं कार्य करूं तो फल के लिए करू पर भगवान बोलते हैं कि तू सिर्फ कर्म करता रहा फल की इच्छा मत कर फल फल देने वाला मैं हूं
आसक्ति यों को त्याग
आसक्ति यों को त्याग कर भगवत अनुसार केवल भगवा समत्व बुद्धि कर्म करने के नाम जो सिर्फ कर्म करता रहता है के नाम को निष्काम कर्म योग कहते हैं | इसी को समत्व योग कहा बुद्धि योग. कर्म योग , मत कर्म ,आदि नामों से कहा गया है मनुष्य ना तो कर्मों का आरंभ किए बिना निष्कर्ष कर्म को यानी योग निष्ठा को प्राप्त होता है और ना कर्म के केवल त्याग मात्र से सिद्धि यानी संख्या निष्ठा को ही प्राप्त होता है
आरंभ किए बिना निष्कर्षा
मतलब प्रभु कह रहे हैं कि मनुष्य ना तो कर्मों का आरंभ किए बिना निष्कर्षा को प्राप्त होता है जब तक आप कोई कर्म नहीं करेंगे तो आपको योग निष्ठा कैसे प्राप्त होगी और न कर्मों के केवल त्याग मात्र से सिद्धि यानी संख्या निष्ठा को ही प्राप्त होता है और न कर्मों के केवल त्याग मात्र जो कर्मों का त्याग कर देते हैं सिद्धि यानी संख्या निष्ठा को ही प्राप्त होता है निसंदेह इन कोई भी निसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षण मात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता है
प्रकृति ने इस प्रकार से सारा मनुष्य समुदाय बनाया हुआ है
इस बात में कि मनुष्य किसी भी काल में कोई भी युग हो कोई भी कालखंड हो क्षण मात्र किसी भी समय बिना कर्म किए बिना नहीं रह सकता कोई ऐसा प्राणी होगा जो कार्य नहीं करता होगा क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति जनित गुणों द्वारा पवस हुआ है क्योंकि प्रकृति ने सारा जो मनुष्य समुदाय है उसे प्रकृति ने गुणों द्वारा प्रवश किया हुआ है कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है प्रकृति ने इस प्रकार से सारा मनुष्य समुदाय बनाया हुआ है कि उसे कर्म करने के लिए बाध्य किया ही जाता है
आप आप खुद देखिए इस बात को समझ लीजिए कि मैं हम है हमारे माता-पिता ने हमारे लिए कर्म किए ठीक है कि हमारे बच्चे सही रहे खुश रहे उनके लिए हम पैसा इकट्ठा करें हम कर रहे हैं अपने बच्चों के लिए कर रहे हैं तो मतलब एक तरीके से यह गोल शून्य के आकार में कि हम अपने मेरे माता-पिता ने मेरे लिए किया है मैं अपने बच्चों के लिए करूंगा उनके बच्चे उनके बच्चों के लिए करेंगे उनके बच्चे उनके बच्चों के लिए करेंगे वैसे ही ये चलता रहेगा समय का चक्र समझते हैं आप समय का चक्र कभी किसी के लिए नहीं रुकता समय एक बार जब समय निकल जाता है तो वह समय कभी दवारा लौट के नहीं आता है इसलिए कभी भी अपनी जो जीभ है अपने मुह है उसको जो बोलने से पहले सोच सोच समझकर बोला करें किसी भी चीज को और आदर्श सम्मान किया करें
मन से जो उन इंद्रियों का चिंतन करता है
श्लोक नंबर छ जो मूल बुद्धि मनुष्य समस्त समस्त इंद्रियों को हट पूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इंद्रियों को विषयों का चिंतन करता रहता है वह मिथ्या चारी अर्थात दम भी कहा जाता है जो मूड बुद्धि मनुष्य मूड बुद्धि मतलब आप एक तरीके से हट बांधने वाला या कोई भी जो यह बोलता है कि आप नास्तिक भी बोल सकते हैं जो ना परमात्मा को मान सकता है और मूड बुद्धि मतलब जो जिसकी बुद्धि बिल्कुल कमजोर समझता ना परमात्मा को ना समझता हो मनुष्य समस्त इंद्रियों को हट पूर्वक बिल्कुल जोर जबरदस्ती से ऊपर से रोक कर मन से उन इंद्रियों के विषयों का चिंतन करता है मन से जो उन इंद्रियों का चिंतन करता है मतलब याद करता है
करता रहता है वह मिथ्या चारी मतलब झूठा है ऐसे अर्थात दम भी कहा जाता हैसे ऐसे को दम भी कहा जाता है तो देखिए मेरे अनुसार मैं बताऊं आपको कि आप अगर इस समय में जो आप चल रहे हैं जो आपने किया है तो अगर आप यह थोड़ा-थोड़ा ज्ञान भी अगर एकत्रित करते हैं अपने अपने शास्त्रों का या किसी भी चीज का तो ज्ञान कभी कम नहीं होता है किसी का भी उससे आपको कुछ ना कुछ सीखने को अवश्य मिलता है और दूसरी चीज हमारा जो सनातन का ज्ञान है
उसमें कभी भी हर सभी की स्त्री पुरुष गंधर्व देख लीजिए स सभी की सभी प्रकार से मतलब कोई भी हो नर हो नारी हो सबकी मतलब इज्जत करना ही सिखाता है किसी से मतलब यह नहीं बोलता कि आप उससे अभद्रता से बात करें कोई भी गलत बोले उसको तो हमेशा सनातन में यह सिखाया गया है कि आप अपने जो संस्कार हैं वह आप अपने संस्कार हमारे माता-पिता ने हमको दिए हम हम आप हमारा फर्ज बनता है
कि हमारे हम अपने बच्चों को वह संस्कार दें तो यही है कि आप परमात्मा पर ध्यान रखें परमात्मा पर थोड़ा ध्यान दीजिए यही नहीं कि पैसा और देखिए पैसा सब कुछ ही नहीं होता है माता-पिता परमात्मा पर माता-पिता को ही परमात्मा कहा जाता है परमात्मा को ही माता-पिता कहा जाता पर जो पृथ्वी लोक पर जो माता-पिता होते हैं वह जीवन जीवन जीना सिखाते हैं पर परमात्मा जो परमात्मा वोह है जो अत आत्मा जो हमारे अंदर जीव आत्मा है उसके परम पिता है परमात्मा व है जो हमारी आत्मा है उसके भी परमात्मा है |
सीताराम राधेकृष्ण
माता-पिता वो है जो हमें जीवन में लड़ना पालना सिखाते हैं अर्थात यह मैं मेरी सबसे यही अनुरोध है कि अपने माता-पिता को भविष्य में कभी भी कोई भी ऐसा मतलब ऐसा ना सोचे देखे मतलब कुछ ऐसा ना करें जो उनके मतलब दिल में कोई बात ऐसी लगे कि हमारे हमारी संतान ने हमें ऐसा बोला या हमारे बच्चों ने हमें ऐसा बोला माता-पिता वो एक ऐसे होते हैं जो मेरे साथ भी ऐसी बात नहीं है
कि सभी के साथ होता है कि कभी कभी कभी वो बेचारे सुन लेते हैं और सुनने के बाद में वह अपने मन की इच्छा को दबा लेते हैं उसे अंदर रख लेते क्योंकि अब हम मां-बाप है तो हमें पता है कि हमें अपने बच्चों के बारे में सोचना है चाहे वो कुछ भी करें तो माता-पिता बेचारे अपने बच्चों के बारे में शुरू से लेकर उनकी जिंदगी तो यही होती है कि देख माता-पिता ने क्या किया शुरू से हमें पढ़ाया लिखाया
पाला पोसा सब कुछ किया अभी हमारी शादी कर दी शादी के बाद में बच्चे हो गए उनके बच्चों बच्चों के भी माता-पिता सिर्फ अपने बच्चों के और अपने पोता पोतियो के बारे में सोचते हैं आप सोचिए इतना आप अपने बच्चों के बारे में नहीं सोच सकते जितना दादा अपने दादा दादी अपने पता पती और नाना नानी अपने देवता और देवती के बारे में सोचते हैं एक कहावत आपने सुनी होगी कि ऐन से प्यारा ब्याज होता है एन मतलब संतान हो गई और ब्याज हो गया पुता पुती हो गया तो इसी के साथ आज के तृतीय अध्याय का हम छठे श्लोक पर यहीं पर समापन करते हैं कल फिर आपसे मुलाकात होगी सीताराम राधेकृष्ण |
कर्मों के केवल त्याग मात्र जो कर्मों का त्याग कर देते हैं
Reviewed by Sanatan my first vlog
on
नवंबर 14, 2024
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