योगी जन प्राण वायु में आपन वायु को हवन करते हैं
योगी जन प्राण वायु में आपन वायु को हवन करते हैं
सीताराम राधे कृष्ण मित्रों कैसे हैं आप सब लोग आशा करता हूं | कि आप घर में सुख शांति से होंगे |सब मंगलमय होगा | तो मित्र कल हमने अध्याय चार के श्लोक नंबर 28 तक समापन किया था | आज हम श्लोक नंबर 29 से श्लोक नंबर 32 तक करेंगे | भगवान श्री कृष्ण कहते हैं |दूसरे कितने ही योगी जन आपन वायु में प्राण वायु को हवन करते हैं | वैसे ही अन्य योगी जन प्राण वायु में आपन वायु को हवन करते हैं |
साधक यज्ञों द्वारा पापों का नाश करने देने वाले
तथा अन्य कितने ही नियमित आहार करने वाले प्राणायाम परायण पुरुष प्राण औरआपन की गति को रोककर प्राणों को प्राणों में ही हवन किया करते हैं | यह सभी साधक यज्ञों द्वारा पापों का नाश करने देने वाले यज्ञों को जानने वाले होते हैं |
परम ब्रह्मा परमात्मा को प्राप्त होते हैं
श्लोक नंबर 31में बोलते हैं | हे कुरु श्रेष्ठ अर्जुन ,यज्ञ से बचे हुए अमृत का अनुभव करने वाले योगी जन संतान परम ब्रह्मा परमात्मा को प्राप्त होते हैं | परम ब्रह्मा परमात्मा को प्राप्त होते हैं |और यज्ञ कर वाले पुरुष के लिए तो यह मनुष्य लोक भी सुखदायक नहीं है फिर परलोक कैसे सुखदायक हो सकता है |
यह ज्ञान भव बंधन की गांठ को काट देता है
श्लोक नंबर 32 में भगवान बोलते हैं | वेदों में इन सभी प्रकार के यज्ञों का वर्णन किया गया है | इन्हें विभिन्न प्रकार के कर्मों से उत्पन्न जान यह ज्ञान भव बंधन की गांठ को काट देता है | भव बंधन की गाठ को काट देता है| सीताराम राधे कृष्ण |
कौन धरती की प्राण बायु के रूप में जाना इमरता है
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