Sanatan Dharma (सनातन धर्म) is a Sanskrit term that translates to "Eternal Dharma" or "Eternal Order." It is a term often used to describe Hinduism in its most timeless and universal form. While "Hinduism" is the more commonly used term in modern contexts, "Sanatan Dharma" emphasizes the eternal, spiritual, and philosophical aspects of the tradition, transcending specific historical or cultural interpretations.
सीताराम राधे कृष्ण दोस्तों कैसे हैं आप सब लोग आशा करता हूं सब घर में सुख शांति से होंगे सब मंगलमय होगा देखि आज हम तृतीय अध्याय थोड़ा समाप्त करने जा रहे हैं और थोड़ा समय का थोड़ा सा भाव है इसलिए मैं आपसे थोड़ा इसी में तीन श्लोक पढ़ के सुना पाऊंगा तो क्षमा प्रार्थी हूं तो श्लोक नंबर 41 में बोलते हैं
श्रेष्ठ बलवान और सूक्ष्म कहते हैं
इसलिए हे अर्जुन तू पहले इंद्रियों को वस में करके इस ज्ञान का विज्ञान का नाश करने वाले महान पापी को महान पापी काम को अवश्य ही बलपूर्वक मार डाले इसलिए हे अर्जुन तू पहले इंद्रियों को वश में करके इस ज्ञान और विज्ञान नाश करने वाले महान पापी काम को अवश्य ही बल पूर्वक मार डाले आप समझ रहे हैं इस बात को इंद्रियों को स्थूल शरीर से या पर यानी श्रेष्ठ बलवान और सूक्ष्म कहते हैं इन इंद्रियों से पर मन है मन से भी पर बुद्धि है
इंद्रियों को स्थूल शरीर से यानी श्रेष्ठ बलवान
और जो बुद्धि से भी अत्यंत पर है वह आत्मा है देखिए इसमें कहा गया है इंद्रियों को स्थूल शरीर से यानी श्रेष्ठ बलवान और सूक्ष्म कहते हैं यह बात सही है इन इंद्रियों से पर ऊंचा मन है मन से भी ऊंचा पर मन के भी ऊपर है कुछ बुद्धि है बुद्धि के ऊपर क्या है अत्यंत जो ऊपर है
तू इस कार्म रूप दुर्जय शत्रु को मार डाल
वोह आत्मा है तो आप अपनी आत्मा की सुनिए इस प्रकार बुद्धि से पर अर्थात सूक्ष्म बल बलवान और अत्यंत श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके हे महा भाव तू इस कार्म रूप दुर्जय शत्रु को मार डाल इसमें कहा गया है इस प्रकार बुद्धि बुद्धि से पर अर्थात सूक्ष्म बलवान और अत्यंत श्रेष्ठ आत्मा को जानकर अत्यंत श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके बुद्धि अपनी बुद्धि देखिए आत्मा आत्मा से नीचे बुद्धि से नीचे मन मन से नीचे इंद्रिया ठीक है
इस काम रूप दुर्जय मतलब जो शत्रु है
बुद्धि के द्वारा मन को वश में करके हे महा भाव इस काम रूप दुर्जय मतलब जो शत्रु है शत्रु को मार डाल और इसमें यहां पर तृतीय अध्याय हमारा समाप्त होता है इसमें एक श्लोक दिया गया है ओम तत्सदती श्रीमद् भगवत दीता सुपन तींस ब्रह्मा विद्यायतन श्री कृष्ण अर्जुन संवाद कर्म योगों नाम तृतीय अध्याय समाप्त तो आप अपने घर में सुख शांति से रहिए प्रभु थोड़ा सा हमारा भी थोड़ा विचलन सा चल रहा है
आपके सम्मुख आया हूं
इसलिए मैं भगवान से प्रार्थना कर रहा हूंकि हे भगवान सब सही हो तो फिर भी मैं आपके सम्मुख आया हूं यह पूर्ण करने के लिए कि अपना कार्य कभी भी नहीं रोकना चाहिए चाहे आप परमात्मा को हमेशा याद जरूर करना चाहिए चाहे सुख हो या दुख हो परमात्मा परीक्षा लेते ही लेते हैं अभी मेरे साथ में भी दुख चल रहा है फिर भी मैं अभी मैं बताना नहीं चाहूंगा पर बहुत ज्यादा क्रिटिकल दुख चल रहा है
सीताराम राधे कृष्ण
कि मेरे मेरे को उधर हॉस्पिटल में भी जाना पड़ता है तो वेंटिलेटर प तो फिर भी मैं अपने परमा को ही याद कर रहा हूं क्योंकि वही सब कुछ करने वाले हैं ठीक है तो आप लोग खुश रहिए मंगलमय रहिए सुखम रहिए कल मिलते हैं आपसे समापन की ओर करते हैं कल हम चतुर्थ अध्याय के थोड़ा थोड़ा बात हम करेंगे जब तक समस्या थोड़ा समाधान नहीं हो पाता है तो आप अपने घर में सुख से रहिए और अपने माता पिता की सेवा करते रहिए अपने बच्चों का ध्यान रखिए यही भगवान से प्रार्थना करता हूं की कृपा बसाए रखें सीताराम राधे कृष्ण
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