ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है
ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है
अश्वथामा विकर्ण सोम दत स्व च इसका अर्थ है आप द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और श्री विजय कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वथामा विकर्ण और सोम दत्त का पुत्र भूरी स्रवा यह है अन्य च बह सरा मदर थे तते जीवता नाना प्रण सर्वे युद् विशारदा और भी मेरे लिए जीवन की आशा त्याग देने वाली है बहुत से शूरवीर अनेक प्रकार के सहस्त्र शास्त्रों से सुसज्जित हैं और सबके सब युद्ध में चतुर है श्लोक नंबर 10 अपर्याप्त तद स्मा कम बल भीष्म भीष्मा भी रक्षम पर्याप्त ते से समम बलम भीमा रक्षम भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजय है
भीम द्वार रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है यह भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश दे रहे हैं
और भीम द्वार रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है यह भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश दे रहे हैं अध्याय एक में के उनकी सेना क्या है और कैसी है आयने श च सर्वेश यथा भागम वस्ते भीष्म मेवा भक्ष भवंतु सर्व ही इसलिए सब मोर्चे पर अपनी अपनी जगह स्थिति स्थित रहते हुए आप लोग सभी निसंदेह भीष्म पितामह की ही सब ओर से रक्षा करें यह दुर्योधन कह रहे हैं यह दुर्योधन आदेश कर रहे हैं कि आप सब लोग चारों ओर से भीष्म पितामह की रक्षा करें ठीक है तस्य सजन हर्ष कुवू पितामह सिंघन दे विन्न गुचे संग दोम दे प्रताप पवान अर्थात अर्जुन अब अर्जुन उवाच है अर्जुन वाच अर्जुन अब पूछते हैं सेन योर भयो मर्दे र अस्थायी ध्वज अर्जुन ने मोर्चा बांधकर डटे हुए धृतराष्ट्र यह संजय बता रहे हैं अर्जुन का उपज बता रहे हैं बांधकर डटे हुए धृतराष्ट्र संबंधियों को देखकर उस शास्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर हृषिकेश श्री कृष्ण महाराज से यह वचन कहा है हे अचत मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिए और जब तक मैं जब तक कि मैं युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धाओं को भली प्रकार देख लूं इस प्रकार युद्ध रूप व्यापार में मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना योग्य है तब तक उसे खड़ा रखिए दुर्बुद्धि दुर्योधन का युद्ध में हित चाहने वाले जो जो जो यह राजा लोग इस सेना में आए हैं इन युद्ध करने वालों को मैं देखूंगा संजय वाच संजय बताते हैं संजय बोले हे धृतराष्ट्र अर्जुन द्वार इस प्रकार कहे अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे हुए महाराज श्री कृष्ण चंद्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा संपूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथों का को खड़ा करके इस प्रकार कहा है कि हे पार्थ युद्ध के लिए जुटे हुए इन कौरवों को देख मतलब कि श्री कृष्ण जी ने इन पूरी सेना को जो सेना खड़ी हुई थी उनको बताया कि अब आप इस युद्ध क्षेत्र को देखो मतलब कि यह सेना कितनी सुंदर लग रही है जिसमें भीष्म पितामह है द्रोणाचार्य जी हैं कृपाचार्य जी हैं कृपाचार्य जी तो अमर है अभी ठीक है यह तो आप चिरंजीवी है आपको तो भी आठ चिरंजीवी के भी नाम नहीं पता होंगे वोह भी मैं आपको बताऊंगा धीरे-धीरे ठीक है तो अब यह सुनिए तो उन्होंने बोला कि यह देखो यह नजारा कितना सुंदर है युद्ध तो हम करने आए हैं पर यह नजारा कितना सुंदर है कि हर रथ पर एक एक महारथी खड़ा हुआ है भीष्म पितामह थे जो डेली एक दिन में 10000 सैनिक मारते थे सोचो वह कितने बड़े महार्थी थे तो उस कोरबो की सेना में कितने बड़े-बड़े वीर महान महार्थी थे जो अधर्म को जानते भी थे कि अधर्म हो रहा है गलत हो रहा है पर धर्म के साथ उनको चलना पड़ रहा था क्योंकि वह कौरवों की तरफ से थे ठीक है इसलिए सुनिए इसके बाद प्रत प्रथा पुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ चाच को दादों पर दद को गुरुओं को मामा को भाइयों को पत्रों को पुत्रों को तथा मित्रों को ससुर को और स्को को जो मतलब संबंधी होते हैं संबंधियों को भी देखा और 27 व का पूर्वा किया उन उपस्थित संपूर्ण बंधुओं को देखकर व कुंती पुत्र अर्जुन अत्यंत करणा से युक्त हो होकर शोक करते हुए यह वचन बोले 27 वा व का उत्तरार्ध है और 28 वा वंग का पूर्वार्ध है उत्तरार्ध और पूर्वार्ध यह आप आगे जानेंगे अर्जुन बोले हे कृष्ण युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस समुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं शिथिल मतलब कप कपा जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कंपन हो रहा है एवं रोम रोम रो मंच हो रहा है 28 व का उत्तरार्ध और 29 वा हाथ से धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित सा हो रहा है और इसलिए मैं खड़ा हूं रहने को भी सामर्थ नहीं हूं हे केशव मैं लक्षणों को भी विपरीत ही देख रहा हूं तथा युद्ध में स्वजन समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता हे
ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है
कृष्ण मैं ना तो विजय चाहता हूं और न राज्य तथा सुखों को ही हे गोविंद हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है हमें जिनके लिए राज्य भोग और सुखाधिकार त्याग कर युद्ध में खड़े हुए हैं गुरुजन ताऊ चाचे लड़ाके और उसी प्रकार दादे मामे ससुर पौत्र साले और तथा और भी संबंधी लोग हैं हे मधुसूदन मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्य के लिए भी मैं इन सबको मारना नहीं चाहता फिर भी पृथ्वी के लिए तो कहना है ही कहना ही है कहना ही क्या है हे जनार्दन धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या मिलेगा क्या प्रसन्नता होगी इन आता तां को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा अत हे माधव अपने ही बांधव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने के लिए हम योग्य नहीं है क्योंकि आपने ही कुटुंब को मारकर हम कैसे सुखी रह सकते हैं यह बात उनकी बहुत सही थी अर्जुन ने सवाल श्री कृष्ण से पूछा कि हे प्रभु अगर धन दौलत सब कुछ है तो हम इनको मारकर ऐसे भोगों का क्या करेंगे जब हमारे साथ में हमारे परिवार वाले भी नहीं होंगे तब उन्हें श्री कृष्ण जी समझाते हैं इस बात को यद्यपि लोभ से भ्रष्ट हुए यह लोग कुल के नाश के उत्पन्न दोषों के मित्रों से विरोध करने में पापों को नहीं देखते हैं तो भी हे जनार्दन कुल के नाश से उत्पन्न दोषों को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने के लिए क्यों नहीं विचार करना चाहिए कुल के नाश से सनातन कुल धर्म नष्ट हो जाता है धर्म के नाश हो जाने पर संपूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है मतलब उनका कहना यह है कि अगर कुल का नाश हो जाएगा तो सनातन धर्म का नाश हो जाएगा और सनातन धर्म का अगर नाट सनातन धर्म का नाश हो जाएगा
धर्म का नाश हो जाने पर संपूर्ण कुल का नाश हो जाएगा
तो धर्म नष्ट हो जाता है तो धर्म का नाश हो जाने पर संपूर्ण कुल का नाश हो जाएगा बात समझ रहे आप इसकी ये हे कृष्ण पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियों अत्यंत दूषित हो हो जाती हैं और हे वसर स्त्रियों के दूषित हो जाने पर वसर शंकर उत्पन्न होता है वर्ण शंकर कुल घाती हों को और कुल को नरक में ले जाने केलिए ही होता है लुप्त हुई पिंड और जल की क्रिया वाले अर्थात श्रद्धा श्राद और त तर्पण से विचित विचलित इनके पितृ लोग भी औद्योगिक प्राप्त होते हैं इन वर्ण संस्कार को दोषों को कुल घाती हों को के सनातन को कुल धर्म और जाति धर्म नष्ट हो जाते हैं हे जनार्दन जिनका कुल धर्म नष्ट हो गया है ऐसे मनुष्यों को अनिश्चित काल तक नर्क में वास होता है ऐसा हम सुनते आए हैं यह बात अर्जुन ने भी कही है कि जिन्होंने सनातन धर्म ही छोड़ दिया अपना कुल ही छोड़ दिया तो उनका तो नर्क में जाना तय है यह बात तो सही है ठीक है उन्होंने मतलब यह बोला है कि अगर सनातन धर्म नष्ट होता है तो उस सनातन धर्म के नष्ट होने से कुल नष्ट होता है यह आप भी जानते हैं आपके ऊपर बीती हुई है कि जब सनातन धर्म नष्ट किया गया था अब से कुछ सदी पहले तो उसमें धर्म भी नष्ट किए गए थे किए गए थे ना उसमें कुल भी नष्ट किए गए थे उसमें बहुत कुछ मतलब सब बहुत कुछ ज्यादा चेंज हुआ था उसमें यह सब आप भी जानते हैं तो आज का अध्याय यही समाप्त करते हैं जय श्री कृष्णा अगली वीडियो में मिलेंगे आपसे थोड़ा संस्कारी वीडियो होगी ये भागवत की थी ये डेली डेली करके मैं आपको यही भगवत सुनाता रहूंगा जो आपको अच्छा लगे संस्कृत का ज्ञान तो इतना मुझे नहीं है पर हिंदी में मैं आपको अच्छी तरीके से समझाता रहूंगा अगर समझ में आए तो बस अपना प्यार देना सनातन धर्म की जय हो और सनातन धर्म को प्रमोट कीजिए उसका प्रचार कीजिए अपने भाई को प्यार दीजिए बस यही सीताराम राधे कृष्णा
ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है
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नवंबर 05, 2024
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