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ज्ञान योगी संपूर्ण गुण में ही गुणों में बरत रहे हैं
ज्ञान योगी संपूर्ण गुण में ही गुणों में बरत रहे हैं
ज्ञान योगी संपूर्ण गुण में ही गुणों में बरत रहे हैं
हे महाबाहो गुण विभाग और कर्म विभाग
सीताराम राधे कृष्ण मित्रों आपके घर में सब सुख शांति से होंगे सब मंगलमय होगा और आप अपने माता पिता की सेवा अच्छे से कर रहे होंगे तो हमने जो पिछला व अध्याय तृतीय के श्लोक नंबर 27 तक किया था अभी हम श्लोक नंबर 28 से स्टार्ट करेंगे इसमें कहते हैं श्री कृष्ण जी कहते हैं परंतु हे महाबाहो गुण विभाग और कर्म विभाग के तत्व को जानने वाला ज्ञान योगी संपूर्ण गुण में ही गुणों में बरत रहे हैं
वह यह तत्व को जानने वाला ज्ञान योगी
ऐसा समझकर उनमें आसक्त नहीं होता है देखि प्रभु कहते हैं कि हे महाभा महाबली अर्जुन जो भी गुण विभाग जिसके अंदर गुण होगा और कर्म विभाग जिसमें कर्म करने की क्षमता होगी वह यह तत्व को जानने वाला ज्ञान योगी जो इन दोनों तत्त्वों को जानने वाला है वह संपूर्ण गुण ही उसके अंदर जो यह दोनों तत्व है वह संपूर्ण गुण ही गुणों में बरत रहे हैं उसके गुणों में ही माने जा रहे हैं ऐसा समझकर उनमें आसक्त नहीं होता अगर वह अपने गुण कर्म को ज्ञानी पुरुष अपने गुण और कर्म को दोनों को जानता है
प्रकृति के दिए हुए गुण होते हैं
तो वह उनमें आसक्ति नहीं आ सकता है कि मेरा कर्म क्या है मेरा गुण मेरे अंदर क्या गुण है यह जानने वाला कि मैं ये कर सकता हूं है ना तो जिसको मोटिवेशन बोलते हैं हम लोग कि ये कि तुम कर सकते हो इसको मोटिवेट करना तो अपने अंदर की क्षमता को जान लेना वही है प्रकृति के गुणों से अत्यंत मोहित हुए मनुष्य गुणों में और कर्म में आसक्त रहते हैं प्रकृति के गुणों से अत्यंत मोहित जो प्रकृति के दिए हुए गुण होते हैं
गुणों और कर्मों में आसक्त रहता है
उसमें मनुष्य बहुत मोहित हो जाता है गुणों और कर्मों में आसक्त रहता है उन उन पूर्णत न समझने वाले मंद बुद्धि अज्ञानियों को पूर्णत जानने वाली ज्ञानी विचलित ना करे देखिए इसमें लिखा है जो उन पूर्णत न समझने वाली जो अपने गुण को नहीं पहचानता कर्म को नहीं पहचानता ऐसे अज्ञानी पुरुष को यह हमेशा विचलित ही रहते हैं अंदर ही अंदर मतलब कुछ ना कुछ चलता ही रहता है वो यही चीजें रहती है
माया के कार्य रूप में पांच महाभूत
अभी इसमें बोला गया है नंबर एक तिरा गुणात्मक मायका कार्य रूप पांच महाभूत और मन बुद्धि अहंकार तथा पांच इंद्रिया पांच कामदिया और शब्दादी पांच विषय इनके सबका समुदाय का नाम गुण विभाग है देखिए गुण विभाग में क्याक आता है त्रगुणात्मक माया के कार्य रूप में पांच महाभूत जो मैंने आपको बताया था जैसे भगवान भगवान का क्या अर्थ होता है भेष भूमि ग स गगन आकाश जिसको बोलते हैं वष वायु अष अग्नि न स नीर पांचों महाभूत हो गए ठीक है जिनसे हम हमारी पृथ्वी गगन आकाश व गगन वायु और अग्नि और जल इन पांचों महा भूतों से ही मनुष्य के इस शरीर का निर्माण होता है
मन बुद्धि अहंकार तथा पांच ज्ञान इंद्रिया
तो ये मन अंदर जो मन बुद्धि अहंकार तथा पांच ज्ञान इंद्रिया जो ज्ञान की पांच इंद्रिया होती है वे और पांच काम इंद्रिया और शब्दा आदि पांच विषय इन सबके समुदाय को गुण विभाग कहा जाता है और इनकी परस्पर की चेष्टा हों का नाम कर्म विभाग है जो यह कार्य करते करते रहते हैं जैसे ज्ञानी हम ये इंद्रिया है हमारी मन है बुद्धि है अहंकार है जिसके अंदर आ जाता है अहंकार आता है तो उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर देता है
एक ही शरीर में देव योनि भी है
देखिए और जो मन है मन विचलित रहता है एक जगह कभी नहीं टिकता सिस्टम क्या है जैसे मैंने बताया था आपको कि कलयुग में क्या है कि एक ही शरीर में राक्षस योनि भी है और एक ही शरीर में देव योनि भी है तो जो अपनी देव योनि को संभालना चाहता है उसको कुछ करना चाहता है तो राक्षस योनि उसको रोकती है जैसे पॉजिटिव को नेगेटिव रोकता है तो वैसा ही मन का काम होता है तो जो मन पर विजय पा लेता है व सब कुछ कर लेता है नंबर दो उपयुक्त गुण विभाग और कर्म विभाग से आत्मा को पृथक अर्थात निर्लेप जानना ही इनका तत्व जानना है
अंतर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त
मुझे अंतर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा संपूर्ण कर्मों को मुझ में अर्पण करके आसरा रहित ममता रहित और संताप रहित होकर युद्ध कर इसमें देखि कितनी अच्छी बात बोली है कि मुझ में अंतर्यामी परमात्मा में लगे हुए मतलब मुझ में अंतर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा संपूर्ण कर्मों को मुझ में अर्पण कर दे जो तेरे पूरे जितने भी कर्म है वो मुझ में अर्पण करके आशा रहित किसी चीज आसा मत कर ममता रहित कोई ममता नहीं संताप रहित कोई शोक शोक नहीं होना चाहिए
श्रद्धा युक्त होकर श्रद्धा पूर्वक
कोई शोक होकर युद्ध कर संताप रहित कोई शोक मत कर और युद्ध कर जो कोई मनुष्य दोष दृष्टि से रहित और श्रद्धा युक्त होकर मेरे इस मत का सदा अनुसरण करते हैं वे भी संपूर्ण कर्मों से छूट जाते हैं जो भी मनुष्य दोष दृष्टि से रहित जो किसी को दोष दृष्टि से देखता रहता है रहित श्रद्धा युक्त होकर श्रद्धा पूर्वक अपने मन को अच्छा बिल्कुल ठंडा दूसरे के विचा दूसरे के विचारों को समझना बिल्कुल शांत से रहना किसी का बुरा ना सोचना भगवान में श्रद्धा लगाए रखना होकर मेरे मत का मेरे कहे हुए मत का अनुसरण करता है वे भी संपूर्ण कर्मों से छूट जाते हैं
मनुष्य मुझ में दोष दोषारोपण करते
भगवान कहते हैं कि तू सब कुछ जो दोष है दूसरे के अंदर दोष निकालना दूसरे के अंदर उकसना अपने आप को देख ठीक है दूसरे के अंदर दोष मत निकालो श्रद्धा में सिर्फ अपने परमात्मा को श्रद्धा में लगाओ और इस मत का अनुसरण जो भी करता है जो प्रभु ने कहा है व पिछले श्लोक में 30 में कि आशा रहित संत ममता रहित य वाला तो वे अपने सभी कर्मों से छूट जाते है परंतु जो मनुष्य मुझ में दोष दोषारोपण करते हुए मेरे इस मत के अनुसार अनुसार नहीं चलते
उन मूर्खों को तो संपूर्ण ज्ञान में मोहित
और उन मूर्खों को तो संपूर्ण ज्ञान में मोहित और नष्ट हुए ही समझ देखिए प्रभु कहते हैं परंतु जो मनुष्य दोषारोपण करते हुए दोष दूसरों को दोष देते हुए मेरे इस मत का अनुसरण नहीं करते हैं इस बात को नहीं अगर मानते हैं तो उन मूर्खों को तू संपूर्ण ज्ञान में मोहित संपूर्ण ज्ञान में मोहित और नष्ट हुए ही समझ ज्ञान बेकार ही है पर वो नष्ट ही हो जाएगा चाहे कितने बड़े ज्ञानी क्यों ना हो ठीक है
आपकी अंतरात्मा बोलती है
जो जब तक परमात्मा के कहे हुए शब्दों पर अगर आप नहीं चलते हैं तो चाहे कितने ही बड़े ज्ञानी क्यों ना हो आप देखिए अंदर से एक होता है क्या ऊपर से एक होता है अंदर से ममता क्या होती है एक होती है बाहर से एक होती है अंदर से तो ममता रियलिटी में वो मानी जाती है जो आपकी अंतरात्मा बोलती है जो परमात्मा से जुड़ी हुई है तो उस चीज को आपको मानना चाहिए अंदर की बात ये बड़े बुजुर्ग भी कह गए कि अंदर की बात सुनो बाहर की बात नहीं सुनो यह बाहर का तो सब दिखावटी है
सभी प्राणी प्रकृति को प्राप्त होते हैं
आपको अंतर मन से दूसरे का भला सोचना चाहिए ऊपर के मन से दुनिया बोलती है बोलती है कि नहीं बोलती है कि वो तेरा भला हो पर अंतर मन से जो भी बोलता है वह परमात्मा को डायरेक जाता है ठीक है सभी प्राणी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात उनके स्वभाव के पवस हुए कर्म करते हैं तो जो प्रकृति के की जो परवरिश होती है स्वभाव प्रकृति के स्वभाव की जो परवरिश होती है उसके अनुसार ही वह अपने कर्म करते हैं
विधि का जो विधान है
ज्ञानवान भी अपनी प्रकृति के अनुसार चेष्टा करता है जो ज्यादा ज्ञानी पुरुष है वह भी प्रकृति के अनुसार ही चेष्टा करता है फिर इसमें किसी का हट क्या करेगा फिर इसमें किसी की जो हट है वो क्या कर सकती है देखिए वैसे यह बात तो सही है जो विधि ने लिख दिया विधि का जो विधान है हमारी किस्मत में जो लिखा है वो तो होना ही है पर कुछ चीज ऐसे होती हैं कि हमको हम अगर यह सोच के बैठ जाए कि विधि का विधान है कि अगर यह होना है
अंतरात्मा से और ऊपर के मन
तो अगर मैं यह चीज ना सोचूं कि यार मैं मतलब मेरे जो परिवार है परिवार जन है पूरा है उनके बारे में थोड़ा ना सोचूं और मैं अपने परिवार जनों के बारे में ही सिर्फ गलत सोचता रहूं अंतरात्मा से और ऊपर के मन से बस ये करता रहूं जो ये कमरे का ये कमरा का इस मैं ये करता रहूं कि आप तो यार बहुत ठीक हो अच्छे हो वो है ये है यह सब करता रहूं तो वो कभी नहीं माना जाता है जो भी अगर आप बोलना चाहते हैं वो अंत आत्मा से बोलिए बिल्कुल अपनी आत्मा को साफ रखिए किसी के विचार किसी के बारे में ठीक है देखिए कलयुग है
भगवान की राह पर चलना
कलयुग में इतना कोई ज्यादा वो तो नहीं है कि मैं तो मानता हूं कि जो ऋषि मुनि वो सब होते थे कि किसी से गलती या पाप ना हुआ हो ऐसी बात नहीं है पर भगवान कहते हैं कि जिस समय तुझसे गलती हुई है उसी समय उसका संताप करो और भगवान से उसका मतलब भगवान से प्रार्थना करो कि हे भगवान हमसे हुआ है तो भगवान की राह पर चलना चाहिए तो आपको भी मैं यही समझा रहा हूं इसमें यह चीजें नहीं है जो आप लोगों को बताया गया है कि गीता पढ़ने से मतभेद होता था इसके पढ़ने से आपको ये पता चलता है कि प्रकृति के अनुसार और जो भगवान के अनुसार है आप जो ऊपर जो चलाने वाला है एक जो एक चलाने वाला है
जो मनुष्य योनि मैंने तेरे को दी
अंतर्यामी वह क्या बोलता है कि जीवन जो मनुष्य योनि मैंने तेरे को दी है इसका अर्थ क्या है तुम दो रोटी कम खा लो किसी का बुरा मत करो ठीक है तो यह सब तुम्हारा ऊपर लिखा जाएगा और तुम अगर मटर पनीर और सब कुछ खा रहे हो और अगले वाले बंदा वो बेचारा भोखा बैठा और उसको सोच र हो तो मरना है तो मरने दे इसको तो वो भी तुम्हारा लिखा जाएगा यह बात आप ध्यान रख लीजिएगा ये यहां नहीं तो वहां मिलेगी और यह आप लोग दिमाग से निकाल दीजिए कि हमको कुछ याद नहीं रहेगा | बहुत बुरी चीज होती है
कभी-कभी भगवान क्रोधित होता है
कभी-कभी भगवान क्रोधित होता है तोआत्मा नष्ट भी हो जाती है ऐसी बात नहीं है ठीक है तो जो प्रभु तुमको जीवा आत्माओं को आत्मा अजर अमर है ये अच्छी बात मानते हैं पर कहीं ना कहीं जो जिस भगवान ने जीवात्मा को अगर बनाया है तो क्या वो पैदा कर सक जीवात्मा को पैदा कर सकता है तो नष्ट नहीं कर सकता तो एक तरीके का स्कूल है तो स्कूल इस स्कूल को आप समझिए आप कक्षा एक से और आप अपने नौकरी तक का विचरण कर रहे हैं
ये पृथ्वी एक स्कूल है
जो मनुष्य योनि है तो इस चीज का आप कीजिए जैसे जैसे इसमें टेस्ट के लिए आपको यहां भेजा गया है ये पृथ्वी एक स्कूल है और हमको भेजा गया है क्लास केलिए स्कूल में पढ़ने के लिए कि अगर हम स्कूल में 12वीं क्लास में फेल हो जाते हैं तो इसका मतलब फिर हम जीवन मरण में दोबारा से आ जाएंगे और अगर हम पास होकर अच्छी सरकारी नौकरी पा लेते हैं तो इसका मतलब हम भवसागर को पार हो जाते हैं और प्रभु को जाने से तो इसका एक ही रास्ता है मैं सिंपल शब्दों में बताया हूं स्कूल में टीचर होता है
हमारा टीचर वो है भगवान है
और वहां पर हमारा टीचर वो है भगवान है तो हमेशा सिर्फ उनकी सुननी चाहिए और किसी की नहीं सुननी चाहिए किसी के किसी के बारे में कभी भी कोई शोक विचार ना रखें चाहे कैसा भी हो उसको मुंह प बोल दो जो भी बोलना है मुंह प बोल दो पर अंतर अंतर मन से कभी मत रखना ये आप ही का नुकसान होगा आप इस चीज का ध्यान रखिए आप आज किसी का बुरा सोच रहे हो आप हमेशा नीचे ही जाओगे वो सामने वाला जिसका बुरा सोच रहा हो ना भगवान उसकी करनी उसके कर्म के हिसाब से उसको ऊपर देता रहता है आपने कहावत सुनी होगी दो तीन कहावत हैं
अपना कर्म कर रहा है
कि हाथी चलता रहता है और कुत्ते भोगते रहते हैं तो कुत्ते कौन हो गए जलने वाले हो गए हाथी कौन हो गया जो बेचारा अपना कर्म कर रहा है और एक एक कहावत यह आ जाती है कि जलने वाले मर जाते हैं पर जो सामने जलने वाले जलते रहे पर हम तो अपना काम करते रहे ठीक है तो ये क्या होता है कि जो जल है वो अपने आप को ही जला रहा है अपनी जीवात्मा को जला रहा है आपसे कल मुलाकात होगी तो अपने घर में खुश रहे मंगलमय रहे सुखमय रहे सबसे प्यार से बात करें इसी के साथ आपसे थोड़ा कल मिलते हैं सीताराम राधे कृष्ण |
ज्ञान योगी संपूर्ण गुण में ही गुणों में बरत रहे हैं
Reviewed by Sanatan my first vlog
on
नवंबर 18, 2024
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