जो अकर्म में कर्म देखता है |
जो अकर्म में कर्म देखता है
सीताराम राधेकृष्ण कैसे हैं आप सब लोग सब सुख शांति और घर में सब मंगल में होगा सब आप सब लोग खुश होंगे | कल हमने श्लोक नंबर 10 से श्लोक नंबर 16 तक समापन किया था आज हम श्लोक नंबर 17 से श्लोक नंबर 20 तक का अर्थ समझेंगे तो भगवान बोलते हैं| कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए और अकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए तथा विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए क्योंकि कर्म की गति गहन है | और जो अकर्म में कर्म देखता है |
वह योगी समस्त कर्मों को करने वाला है |
वह मनुष्य में बुद्धिमान है और वह योगी समस्त कर्मों को करने वाला है | वह सारे ज्ञानी पुरुषों में सबसे बड़ा बुद्धिमान या पंडित कहा जाता है और वह योगी समस्त कर्मों को करने वाला होता है | जिसके संपूर्ण शास्त्र सम्मत कर्म बिना कामना और संकल्प के होते हैं | तथा जिसके समस्त कर्म ज्ञान रूप अग्नि के द्वारा भस्म हो गए हैं
परमात्मा में नित्य तृप्त है |
उस महापुरुष को ज्ञानी जन भी पंडित कहते हैं |जो पुरुष समस्त कर्मों में और उनके फल में आसक्ति का सर्वथा त्याग करके संसार के आश्रय से रहित हो गया है और परमात्मा में नित्य तृप्त है | वह कर्मों में भली भाति बरता हुआ भी वास्तव में कुछ भी नहीं करता है सीताराम राधेकृष्ण |
:-पूर्ण परमात्मा का मंत्र क्या है?
:-गीता जी के अनुसार पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने का कौन सा मंत्र बताया है?
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