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मैं वह तत्व ज्ञान रूप योग देता हूं(vah mujhko prapt hote)?

 

मैं वह तत्व ज्ञान रूप योग देता हूं(vah mujhko prapt hote)

मैं वह तत्व ज्ञान रूप योग देता हूं(vah mujhko prapt hote)?

सीताराम राधे कृष्ण आशा करता हूं |आपके घर में सब सुख शांति से होंगे आप मंगलमय होगा और आप अपने माता-पिता की सेवा कर रहे होंगे |अपने ग्रह जीवन में व्यस्त होंगे अपने बच्चों पर अच्छी शिक्षा दे रहे होंगे तो कल हमने अध्याय 10 के श्लोक नंबर तक समापन किया था |आज श्लोक नंबर 10 से प्रारंभ करेंगे इसमें प्रभु कहते हैं| उन निरंतर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेम पूर्वक भजने वाले भक्तों को मैं वह तत्व ज्ञान रूप योग देता हूं जिससे वह मुझको ही प्राप्त होते हैं |

तत्व ज्ञान रूप में दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूं?

 हे अर्जुन के ऊपर अनुग्रह करने के लिए उनके अंत करण में स्थित हुआ मैं स्वयं ही उनके अज्ञान जनित अंधकार को प्रकाश में तत्व ज्ञान रूप में दीपक के द्वारा नष्ट कर देता हूं, अर्जुन उप अर्जुन बोले आप परम ब्रह्म परम धाम और परम पवित्र है |क्योंकि आपको सब ऋषिगण सनातन दिव्य पुरुष और देवों का भी आदिदेव अजन्मा और सर्वव्यापी कहता है |वैसे ही देव ऋषि नारद तथा असित और देवल ऋषि महर्षि व्यास भी कहते हैं |और आप भी मेरे प्रति कहते हैं| 


हे भूतों को उत्पन्न करने वाले ?

हे केशव जो कुछ भी मेरे प्रति आप कहते हैं |इस सबको मैं सत्य मानता हूं | हे भगवान आपके लीला में स्वरूप को ना तो दानव जानते हैं |और ना देवता ही हे भूतों को उत्पन्न करने वाले हे भूतों के ईश्वर हे देवों के देव हे जगत के स्वामी हे पुरुषोत्तम आप स्वयम ही अपने से अपने को जानते हैं| इसलिए आप ही अपन उन अपनी दिव्य विभूतियों को से संपूर्णता से कहने में समर्थ है जिन विभूतियों के द्वारा आप इन सब लों को व्यक्त करके स्थित है| 


आपके अमृत वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति ?

हे योगेश्वर मैं किस प्रकार निरंतर चिंतन करता हुआ आपको जानू और हे भगवान आप किन-किन भावों में मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य है| हे जनार्दन अपनी योग शक्ति को और विभूति को फिर भी विस्तार पूर्वक कहिए |क्योंकि आपके अमृतम वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती |अर्थात सुनने की उत्कृष्ट बनी रहती है |

हे अर्जुन मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूं ?




भगवान श्री कृष्ण बोले हे कुरु श्रेष्ठ अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियां हैं उनको तेरे लिए प्रधानता से कहूंगा क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है| हे अर्जुन मैं सब भूतों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूं तथा संपूर्ण भूतों का आदि हूं, मध्य और अंत में भी मैं ही हूं,मैं अदिति के 12 पुत्रों में विष्णु और ज्योति हों में किरणों वाला सूर्य हूं, तथा मैं वायु देवताओं का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चंद्रमा हूं, मैं वेदों में सामवेद हूं देवों में इंद्र हूं इंद्रियों में मन हूं, और भूत प्राणियों की चेतना अर्थात जीवन सक्ति, मैं एक एकादश रुद्र में शंकर हूं ,और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूं, मैं आठ वुओं में अग्नि हूं, और शिखर वाले पर्वतों में सुमेरू पर्वत हूं, पुरो रहित में मुखिया पति मुझको जानना |

 मैं सेनापतियों में स्कंद और जलाशय में समुद्र हूं?

हे पार्थ, मैं सेनापतियों में स्कंद और जलाशय में समुद्र हूं ,मैं महर्षिओं में ब्रग और शब्दों में एक अक्षर अर्थात ओंकार हूं, सब प्रकार के यज्ञों में जप यज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय पहाड़ हूं ,मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष देव ऋषियों में नारद मुनि ,गंधर्व में चित्ररथ और सिद्धों ,में कपिल मुनि हूं |

                               "सीताराम राधे कृष्ण"




गीता के 10 अध्याय में क्या लिखा गया है?


चातुर्वर्ण्य मया सृष्टं गुणकर्मविभागः गीता में यह गीत कौन सा है?


गीता में स्ती के बारे में क्या लिखा है?


गोता के दसबै अध्याय में कितने श्लोक हैं?






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