Header Ads

vlogs

शस्त्र धारियों में श्री राम हूं|(macchliyo me magar hu)

शस्त्र धारियों में श्री राम हूं|(macchliyo me magar hu)


शस्त्र धारियों में श्री राम हूं|(macchliyo me magar hu)

सीताराम राधे कृष्ण आशा करता हूं आपके घर में सब सुख शांति से होगा सब मंगलमय होगा आप अपने माता-पिता की सेवा कर रहे होंगे और अपने गृह जीवन में व्यस्त होंगे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहे होंगे तो कल हमने अध्याय 10 के श्लोक नंबर 30 तक समापन किया था आज हम इस अध्याय नंबर श्लोक अध्याय नंबर 10 के श्लोक नंबर 31 से प्रारंभ करेंगे भगवान बोलते हैं मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्र धारियों में श्री राम हूं तथा मछलियों में मगर हूं और नदियों में श्री भगीरथ गंगा हूं |

 मैं ही हूं मैं विद्याओं में आध्यात्म विद्या ?

हे अर्जुन सृष्टि  का आदि और अंत तथा मध्य भी मैं ही हूं मैं विद्याओं में आध्यात्म विद्या अर्थात ब्रह्म विद्या और परस्पर विवाद करने वालों का तत्व निर्णय के लिए किया जाने वाला वाद हूं मैं अक्षरों में ओकार हूं और समसो में द्वंद नामक समास हूं अक्षय काल अर्थात काल का भी मैं महाकाल हूं तथा सब और मुख वाला विराट स्वरूप सबका धारण पोषण करने वाला भी मैं ही हूं|

दमन करने की शक्ति हूं?

 मैं सब का नाश करने वाला मृत्यु और उत्पन्न होने वालों का उत्पत्ति हेतु तथा स्त्रियों में कीर्ति श्री वाक स्मृति मिधा धृति और क्षमा हूं | तथा गायन करने योग्य श्रुति हूं | मैं बृहत शम और छंदों में गायत्री छंद हूं ,तथा महीनों में मार्गशीर्ष और दमन करने की शक्ति हूं,मैं छल करने वालों में जुआ और प्रभावशाली पुरुषों का प्रभाव हूं मैं जीतने वालों का विजय हूं निश्चय करने वालों का निश्चय और सात्विक पुरुषों का सात्त्विक भाव हूं | 

जीतने की इच्छा वालों की नीति हूं ?

वसुदेव अर्थात मैं स्वयं तेरा सखा पांडवों में धनंजय अर्थात तू मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हूं, मैं दमन करने वालों का दंड अर्थात दमन करने की शक्ति हूं ,जीतने की इच्छा वालों की नीति हूं गुप्त रखने योग्य भाव का रक्षक मोन हूं और ज्ञानवान का तत्व ज्ञान भी मैं ही हूं,|

जो सब भूतों की उत्पत्ति का कारण है?





" हे अर्जुन जो सब भूतों की उत्पत्ति का कारण है वह भी मैं ही हूं "|क्योंकि ऐसा चर और अचर कोई भी भूत नहीं है जो मुझसे रहित हो हे परम तप मैं दिव्य विभूतियों का अंत नहीं मैंने अपनी विभूतियों का यह विस्तार तो तेरे लिए एकदेश से अर्थात संक्षेप से कहा है |जो भी विभूतियुक्त अर्थात ऐश्वर्ययुक्त  कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है  उसको तू मेरे तेज के अंश की ही अभिव्यक्त जान |

एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हू ?

 हे अर्जुन इस बहुत जानने से तेरा क्या प्रायोजन है मैं इस संपूर्ण जगत को अपनी योग शक्ति के एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हू अध्याय 10 समापन की तो आपसे कल मुलाकात होगी अध्याय 11 से हम प्रारंभ करेंगे तो आशा करता हूं आप अपने घर में सुख शांति से रहे और अपने  जीवन में व्यस्त रहेंगे अपने माता पिता की सेवा करते रहेंगे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देंगे और आप परमात्मा को याद करते रहेंगे तो आपसे कल मुलाकात होगी  |                                                 



                                      "सीताराम राधे कृष्ण"





भगवद गीता में अध्याय 10 क्या है?


गीता में कितने अध्याय हैं?


गीता के अनुसार ईश्वर कौन है?


भगवद गीता में अध्याय 10 क्या है?









कोई टिप्पणी नहीं