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अध्याय 12 के श्लोक नंबर15 ?(jo purush aakanksha rahit)

 


अध्याय 12 के श्लोक नंबर15 ?(jo purush aakanksha rahit)

अध्याय 12 के श्लोक नंबर15 ?(jo purush aakanksha rahit)

अध्याय 12 के लोक नंबर 15 !

सीताराम राधे कृष्ण आशा करता हूं, आपके घर में सब शांति से होंगे आप अपने जीवन में व्यस्त होंगे, अपने माता पिता की सेवा कर रहे होंगे, अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और शास्त्र का ज्ञान दे रहे होंगे, और आप परमात्मा को याद कर रहे होंगे, तो कल हमने अध्याय 12 के श्लोक नंबर 14 पर समापन किया था |आज हम अध्याय 12 के लोक नंबर 15 से प्रारंभ करेंगे|

भक्ति युक्त पुरुष मुझको प्रिय है !

इसमें प्रभु बोलते हैं |  जो पुरुष आकांक्षा से रहित है, ना द्वेष करता है श ना शोक करता है ना कामना करता है |तथा जो शुभ और अशुभ संपूर्ण कर्मों का त्यागी है वह भक्ति युक्त पुरुष मुझको प्रिय है जो शत्रु मित्र में और मान अपमान में श्रम है तथा सर्दी गर्मी और सुख दुख आदि द्वंद में श्रम है और आसक्ति से रहित है |

स्थिर बुद्धि भक्ति मान पुरुष मुझको प्रिय है !




जो निंदा स्तुति को समान समझने वाला है मननशील और जिस किसी प्रकार से भी शरीर का निर्वाह होने में सदा ही संतुष्ट है |और रहने के स्थान में ममता और आसक्ति से रहित है |वह स्थिर बुद्धि भक्ति मान पुरुष मुझको प्रिय है |

श्रद्धा योग पुरुष मेरे परायण ?

 परंतु जो श्रद्धा योग पुरुष मेरे परायण होकर इस ऊपर कहे हुए धर्म में अमृत को निष्काम प्रेम भाव से सेवन करते हैं | वे भक्त मुझको अतिशय प्रिय है |तो आज के लिए हम अध्याय 12 यही पर समाप्त करते हैं | 



                         "सीताराम राधे कृष्ण"
























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