Header Ads

vlogs

श्री कृष्ण बोलते हैं | परम सिद्धि को प्राप्त महात्मा जन मुझको!

 


श्री कृष्ण बोलते हैं | परम सिद्धि को प्राप्त महात्मा जन मुझको!

श्री कृष्ण बोलते हैं | परम सिद्धि को प्राप्त महात्मा जन मुझको!

सीताराम राधे कृष्ण आशा करता हूं, आपके घर में सब सुख शांति से होंगे, सब मंगलमय होगा आप अपने परिवार की सेवा कर रहे होंगे ,अपने माता पिता की सेवा कर रहे होंगे |तो कल हमने अध्याय 8 के श्लोक नंबर 13 तक किया था |आज हम श्लोक नंबर 14 से करेंगे  भगवान श्री कृष्ण बोलते हैं | परम सिद्धि को प्राप्त महात्मा जन मुझको प्राप्त होकर दुखों के घर एवं क्षण भंगुर पुन: जन्म को नहीं प्राप्त होते हैं |


हे कुंती पुत्र मुझको प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता:

हे अर्जुन ब्रह्मलोक पर्यंत सब लोग पुनरावृति है |परंतु हे कुंती पुत्र मुझको प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता क्योंकि मैं कलातीत हूं |और यह सब ब्रह्मादेवी का जो एक दिन है उसको 1000 चतुरयुग तक की अवधि वाला और रात्रि भी 1000 चतुर युग गीत तक की अवधि वाला जो पुरुष तत्व से जानते हैं वे योगी जन काल के तत्व को जानने वाले हैं| संपूर्ण चराचर भूत गणों ब्रह्मा के दिन के प्रवेश काल में अव्यक्त से अर्थात ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेश काल में उस अव्यक्त नाम नामक ब्रह्मा केसूक्ष्म शरीर में ही लीन हो जाते हैं |


वह परम दिव्य पुरुष सब भूतों के नष्ट होने:

हे पार्थ वही यह भूत समुदाय उत्पन हो होकर प्रकृति में वश में हुए रात्रि के प्रवेश काल में लीन होता है |और दिन में प्रवेश काल में फिर उत्पन्न होता है उस अव्यक्त से भी अति परे दूसरा अर्थात विश्लेषण जो सनातन अव्यक्त भाव है |वह परम दिव्य पुरुष सब भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता जो अव्यक्त अक्षर इस नाम से कहा गया है |उसी अक्षर नामक व्यक्त भाव को परम गति कहते हैं | तथा जिस सनातन अव्यक्त भाव को प्राप्त होकर मनुष्य वापस नहीं आते वह मेरा परम धाम है |


हे पार्थ जिस परमात्मा के अंतर्गत सर्वभूत है ?

हे पार्थ जिस परमात्मा के अंतर्गत सर्वभूत है |जिस सच्चिदानंदन परमात्मा से यह समस्त जगत परिपूर्ण है | वह सनातन अव्यक्त परम पुरुष तो अन्य भक्ति से ही प्राप्त होने योग्य है | हे अर्जुन जिस काल में शरीर त्याग कर गए हुए योगी जंतु वापस ना लौटने वाली गति को और जिस काल में गए हुए वापस लौटने वाली गति को ही प्राप्त होते हैं


 जिस मार्ग में ज्योति में अग्नि अभिमानी देवता है?

 उस काल को अर्थात दोनों मार्गों को कहूंगा जिस मार्ग में ज्योति में अग्नि अभिमानी देवता है दिन का अभिमानी देवता है |शुक्ल पक्ष का अभिमानी देवता है और उत्तरायण के छह महीनों का अभिमानी देवता है |उस मार्ग में मरकर गए हुए ब्रह्म देवता योगी जन उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले जाए जाकर ब्रह को प्राप्त होते हैं | जिस मार्ग में धूमा भिमानी देवता है | रात्रिअभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष काअभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छह महीनों का अभिमानी देवता है |

चंद्रमा की ज्योति को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल?

उस मार्ग में मरकर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपयुक्त देवताओं द्वारा क्रमश ले गया हुआ |चंद्रमा की ज्योति को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोग करर वापस आता है |क्योंकि जगत के यह दो प्रकार के शुक्ल और कृष्ण तथा अर्थात देवयान और पितयान मार्ग सनातन माने गए हैं  |इनमें एक के द्वारा गया हुआ जिसे वापस नहीं लौटना पड़ता उस परम गति को प्राप्त होता है |और दूसरे के द्वारा गया हुआ फिर वापस आता है |



हे अर्जुन तू सब काल में समबुद्धि रूप योग से युक्त हो ?

अर्थात जन् मृत्यु को प्राप्त होता है| हे पार्थ इस प्रकार इन दोनों मार्गों को तत्व से जानकर कोई भी योगी मोहित नहीं होता |इस कारण हे अर्जुन तू सब काल में समबुद्धि रूप योग से युक्त हो अर्थात निरंतर मेरी प्राप्ति के लिए साधन करने वाला हू | योगी पुरुष इस रहस्य को तत्व से जानकर वेदों के पढ़ने में तथा यज्ञ तप और दान  करने में जो पुण्य फल कहा है |उन सबको निसह उल्लंघन कर जाता है |और सनातन परम पद को प्राप्त होता है |अष्टम अध्याय यहीं पर समाप्त होता है |तो आपसे कल मुलाकात होगी |

                                                         "सीताराम राधेकृष्ण "




गीता अध्याय 7 के श्लोक 15 में क्या लिखा है?


गीता के 8 अध्याय में क्या लिखा गया है?






कोई टिप्पणी नहीं