Header Ads

vlogs

श्री कृष्ण बोलते हैं "शुद्ध आचरण वाले श्रीमान पुरुषों के घर में जन्म लेते हैं

 

श्री कृष्ण बोलते हैं"शुद्ध आचरण वाले श्रीमान पुरुषों के घर में जन्म लेते हैं

श्री कृष्ण बोलते हैं "शुद्ध आचरण वाले श्रीमान पुरुषों के घर में जन्म लेते हैं

सीताराम राधे कृष्ण आशा करते हैं घर में सब शांति से होंगे | आप अपने माता पिता की सेवा कर होंगे और अपने जीवन में व्यस्त होंगे |कल हमने अध्याय के शलोक नंबर 39 तक समापन किया था |आज लोक नंबर 40 से प्रारंभ करेंगे | भगवान श्री कृष्ण बोलते हैं हे पार्थ उस पुरुष का ना तो इस लोक में नाश होता है |और ना परलोक में ही क्योंकि हे प्यारे आत्मरोध उद्धार के लिए अर्थात भगवत प्राप्ति के लिए कर्म करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को प्राप्त नहीं होता है | योग भ्रष्ट पुरुष पुण्यवान के लोकों को अर्थात स्वर्ग उत्तम लोकों को प्राप्त होकर उनमें बहुत वर्षों तक निवास करके फिर शुद्ध आचरण वाले श्रीमान पुरुषों के घर में जन्म लेते हैं जो पुण्य आत्मा होती हैं | वह अच्छे घर्म में जन्म लेती है |अथवा वैराग्य वन पुरुष उन लोकों में ना जाकर ज्ञानवान योगियों के ही कुल में जन्म लेता है |


भगवान की ओर आकर्षित किया जाता है

 परंतु इस प्रकार का जो यह जन्म है | अत्यंत दुर्लभ होता है |वहां उस पहले शरीर में संग्रह किए हुए बुद्धि संयोग को अर्थात संबंधी रूप योग के संस्कार को अन्यस ही प्राप्त हो जाता है | और हे कुरु नंदन उसके प्रभाव से वह फिर परमात्मा की प्राप्ति और सिद्धि के लिए पहले से ही बढ़कर प्रयत्न करता है | वह श्रीमानों के घर में जन्म लेने वाला योग भ्रष्ट पराधीन हुआ भी उस पहले ही अभ्यास में निसंदेह भगवान की ओर आकर्षित किया जाता है | तथा  बुद्धि योग का जिज्ञासु भी वेद में कहे हुए सकाम कर्मों को फल में उल्लंघन नहीं कर सकता | परंतु प्रयत्न पूर्वक अभ्यास करने वाला योगी तो पिछले अनेक जन्मों के संस्कार बल से इसी जन्म में संसद होकर संपूर्ण पापों से रहित होकर तत्काल ही परमगति को प्राप्त हो जाता है योगी तपस्या से श्रेष्ठ है | शास्त्र ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ है माना गया है |और सकाम का कर्म करने वाला भी योगी श्रेष्ठ है | 

इस विज्ञान से ही तत्वज्ञान को संपूर्ण कहूंगा

हे अर्जुन तू योगी हो संपूर्ण योगियों में भी जो श्रद्धावन योगी मुझ में लगे हुए आत्मा से मुझको निरंतर बसता है | वह योगी मुझे परम श्रेष्ठ मान्य होता है | हे पार्थ अनन्य प्रेम से मुझ में आत शक्ति और अनन्य भाव से मेरे परायण होकर योग में लगा हुआ तू जिस प्रकार से संपूर्ण विभूति बल ऐश्वर्य  गुणों से युक्त सबके आत्मा रूप मुझको सहनशील कर जाने जानेगा उसको सुन मैं तेरे लिए इस विज्ञान से ही तत्वज्ञान को संपूर्ण कहूंगा | 

यह आठ प्रकार से विभाजित मेरी प्रकृति

जिसको जानकर संसार में फिर और कुछ भी जानने योग्य शेष नहीं रह जाता है हजारों मनुष्य में कोई एक मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करता है |और उन यत्न करने वाले योगियों में भी कोई एक मेरे परायण होकर मुझको तत्व से अर्थात यथार्थ रूप से जानता है प्राथमिक रूप से जानता है | पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश मन बुद्धि और अहंकार भी इस प्रकार यह आठ प्रकार से विभाजित मेरी प्रकृति है यह आठ प्रकार के भेदों वाली तो अपरा अर्थात मेरी जड़ प्रकृति है | 

संपूर्ण भूत इन दोनों प्रकृति हों से ही उत्पन्न होने वाला 

और हे महा इससे दूसरी को जिससे यह संपूर्ण जगत धारण किया जाता है | मेरी जीवर रूपा परा अर्थात चेतन प्रकृति जान इसलिए हे अर्जुन तू ऐसा समझ कि संपूर्ण भूत इन दोनों प्रकृति हों से ही उत्पन्न होने वाला है |और मैं संपूर्ण जगत का प्रभाव तथा प्रलय हूं ,अर्थात संपूर्ण जगत का मूल कारण हे धनंजय मुझसे भिन्न दूसरा को कोई भी परम कारण नहीं है | यह संपूर्ण जगत सूत्र में सूत्र के मानियो के सदृश्य मुझ में गुता हुआ है | 

संपूर्ण वेदों में ओंकार हूं

 हे अर्जुन मैं जल में रस हूं, चंद्रमा में चंद्रमा ,और सूर्य में प्रकाश हूं ,संपूर्ण वेदों में ओंकार हूं ,आकाश में शब्द और पुरुषों में पुरुषत्व मैं पृथ्वी में पवित्र गंध और अग्नि में तेज तथा संपूर्ण भूतों में उनका जीवन हूं ,और तपस्वी में तप हूं , हे अर्जुन तू संपूर्ण भूतों का सनातन बीज मुझको ही जान मैं बुद्धि मानों की बुद्धि और तेजस्व हों का तेज हूं | हे भारत श्रेष्ठ मैं बलवान का आसक्ति और कामनाओं से रहित बल अर्थात सामर्थ्य हूं |

शास्त्र के अनुकूल काम हो

और सब भूतों में धर्म के अनुकूल अर्थात शास्त्र के अनुकूल काम हो और भी जो सत्व गुण से उत्पन्न होने वाले भाव हैं |और जो रजोगुण से उत्पन्न होने वाले तथा तमो गुण से उत्पन्न होने वाले भाव हैं |उन सबको तू मुझसे ही होने वाले हैं |ऐसा जान परंतु वास्तव में उनमें मैं और वे मुझ में नहीं है |गुणों के कार्य रूप सात्विक राजस और तामस इन तीनों प्रकार से भाव से यह सारा संसार प्राणी समुदाय मोहित हो रहा है इसलिए इन तीनों गुणों से परे मुझे अविनाशी को नहीं जानता है | 



माता-पिता का ध्यान रखें 

तो आज हम अध्याय 7 के श्लोक नंबर 13 तक ही समापन करते हैं | बाकी कल आपसे मुलाकात होगी तो आप अपने माता-पिता का ध्यान रखें | और अपने गृह जीवन में व्यस्त रहे और मनोकामना करता हूं | सब अच्छे से आपसे बातें करें और आप अपने जीवन में बिजी व्यस्त रहे |और परमात्मा को याद करते रहे बस यही आशा करते हैं | तो अपने माता-पिता और अपने गृह जीवन में व्यस्त रहिए और अपने बच्चों का ध्यान रखिए इसी के साथ सीता राम राधे कृष्ण |



कृष्ण के अनुसार शुद्ध प्रेम क्या है?


कृष्ण का मुख्य संदेश क्या है?


श्री कृष्ण के अनुसार ज्ञान क्या है?


श्री कृष्ण के व्यक्तित्व से आप क्या सीखते हैं?


कृष्ण का सबसे अच्छा संक्षिप्त नाम क्या है








कोई टिप्पणी नहीं