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अध्याय 7 श्लोक नंबर एक में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ?

अध्याय 7 श्लोक नंबर एक में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ?
 

अध्याय 7 श्लोक नंबर एक में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं ?

सीताराम राधे कृष्ण आशा करता हूं आपके घर में सब सुख शांति से होंगे सब कुशल मंगल होंगे आप अपने माता-पिता की सेवा कर रहे होंगे अपने बच्चों का ध्यान रख रहे होंगे और सभी से विवेक से बातें कर रहे होंगे आज हम सप्तम अध्याय आरंभ करेंगे तो इसमें प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं 

कोई भी पुरुष योगी नहीं हो सकता :

श्लोक नंबर एक जो पुरुष कर्म फल काआश्रय ना लेकर करने योग्य कर्म करता है वह सन्यासी तथा योगी है और अग्नि का त्याग करने वाला सन्यासी नहीं तथा केवल क्रियाओ का त्याग करने वाला योगी नहीं कहलाता हे अर्जुन जिसको सन्यास ऐसा कहते हैं उसी को तू योग जान क्योंकि संकल्पों का त्याग न करने वाला कोई भी पुरुष योगी नहीं हो सकता योग में आरूढ़ होने की इच्छा वाले मननशली पुरुष के लिए ही योग की प्राप्ति में निष्काम भाव से कर्म करना ही हेतु कहा जाता है और योगरूढ़ हो जाने पर उस योग आरूढ़ पुरुष को जो सर्वसंकल्पों का अभाव है वही कल्याण में हेतु कहा जाता है


सर्व संकल्पों का त्यागी पुरुष:

 इसलिए हे अर्जुन जिस काल में ना तो इंद्रियों के भोगों में और ना ही कर्मों के आसक्त में होता है उस काल में सर्व संकल्पों का त्यागी पुरुष योगरूढ़ कह जाता था योगरूढ़ कहा जाता अपने द्वारा अपना संसार समुद्र से उदार उद्धार करें और अपने को उद्योग गति में ना डाले क्योंकि यह मनुष्य आप ही तो अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु होता है जिस जीवात्मा द्वारा मन और इंद्रियों सहित शरीर जीता हुआ है 

आत्मा वाले पुरुष के ज्ञान में ?

उसी जीवात्मा को वह आप ही मित्र बनाता है और जिसके द्वारा मन तथा इंद्रियों सहित शरीर नहीं जीता गया है उसके वह आप ही  शत्रुता बरता है और बनाता है सर्दी गर्मी और सुख दुख आदि में तथा मान और अपमान में जिसके अंत करण की वृतिया भली भाति शांत है ऐसे स्वादहीन आत्मा वाले पुरुष के ज्ञान में सच्चिदानंदन परमात्मा समयक प्रकार से स्थित है अर्थात उसके ज्ञान में परमात्मा के सिवा अन्य और कुछ नहीं होता है 

जिसके लिए मिट्टी पत्थर और स्वर्ण समान है ?

इसलिए हे अर्जुन  ज्ञान विज्ञान से तृप्त है जिसकी स्थिति विकार रहित है जिसकी इंद्रिया भली भाति जीती हुई है और जिसके लिए मिट्टी पत्थर और स्वर्ण समान है तीनों समान है वह योग्य युक्त अर्थात भगवत प्राप्त है ऐसा कहा जाता है हे अर्जुन सहद्र मित्र वैरी उदासीन मध्यस्थ द्वेष बंधु गण धर्मात्मा में और पापियों में भी समान भाव रखने वाले अत्यंत श्रेष्ठ होते हैं हे महानुभाव मन और इंद्रियो सहित शरीर को वश में रखने वाला आशा रहित और संग्रह रहित योगी अकेला ही एकांत में स्थान स्थित होकर आत्मा को निरंतर परमात्मा में लगाता रहता है

इंद्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए?

 इसलिए हे भारत शुद्ध भूमि में जिसके ऊपर क्रमश कुष मृग छाला और वस्त्र बिछे होते हैं जो ना बहुत ऊंचा होता है और ना ही बहुत नीचा होता है ऐसे अपने आसन को स्थिर स्थापन करके उस पर आसन पर बैठकर चि और इंद्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र करके अंतःकरण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करें हे पुत्र काया और सिर और गले को समान एवं अचल धारण करके और स्थिर होकर अपनी नासिका के अग्र भाग पर दृष्टि जमाकर अन्य दिशाओं को न देखता हुआ ब्रह्मचारी के व्रत में स्थित भह रहित और भली भाति शांत अंतक वाला सावधान योगी मन को रोककर मुझ में चित्त वाला और मेरे परायणहोकर स्थिर होता है

परमेश्वर के स्वरूप में लगाता हुआ है:

 वस में किए हुए मन वाला योगी इस प्रकार आत्मा को निरंतर मुझ में परमेश्वर के स्वरूप में लगाता हुआ है मुझ में रहने वाली परमानंद और पराकाष्ठा रूपी शांति को प्राप्त होती है इसलिए हे अर्जुन यह लोग ना तो बहुत खाने वाले का ना बिल्कुल ना खाने वाले का और ना बहुत सय करने वाले का स्वभाव वाले का और ना सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है दुखों का नाश करने वाला योग तो योग तो यथा योग्य आहार विहार करने वाले का कर्मों में यथा योग्य चेष्टा करने वाले का और यथा योग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है 

परमात्मा में ही भली भाति स्थित हो जाता है:





अंत में श्लोक नंबर 18 अत्यंत वश में किया हुआ चित्त जिस काल में परमात्मा में ही भली भाति स्थित हो जाता है उस काल में संपूर्ण भोगों से रहित पुरुष योग युक्त है ऐसा कहा जाता है अलोक नंबर 19 से हम कल प्रारंभ करेंगे तो भगवान से यही प्रार्थना करता हूं किआपके घर में सब सुख शांति बनी रहे सब कुशल मंगल रहे आप अपने माता-पिता की सेवा करते रहे इस संसार में सभी से प्यार से और परमात्मा के क हुए वचनों से ही आप संपर्क बनाए रखें किसी से द्वेष भावना ना रखें और फिर आपसे कल मुलाकात होगी खुश रहे खुश रखें संसार को खुश रखें सीताराम राधे कृष्ण |


गीता अध्याय 7 के श्लोक 7 में क्या लिखा है?


श्री कृष्ण द्वारा कितने श्लोक कहे गए हैं?


गीता के 7 अध्याय में क्या लिखा हुआ है?


गीता अध्याय 7 श्लोक 15 में क्या लिखा है?


गीता का सातवां अध्याय पढ़ने से क्या होता 










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