अध्याय 13 श्लोक नंबर 13(bhagwan bole vah sab)
अध्याय 13 श्लोक नंबर 13(bhagwan bole vah sab) !
सीताराम राधे कृष्ण आशा करता हूं, आपके घर में सब सुख शांति से होंगे, आप अपने माता पिता की सेवा कर रहे होंगे, अपने जीवन में होंगे, और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और शास्त्र का ज्ञान दे रहे होंगे, परमात्मा को याद कर रहे होंगे, तो कल हमने अध्याय 13 के श्लोक नंबर 12 पर समापन किया था |आज श्लोक नंबर 13 से प्रारंभ करेंगे |भगवान बोले वह सब हाथ, पैर वाला और सब नेत्र, सिर और मुख वाला तथा कान वाला है |
वह संपूर्ण इंद्रियों के विषयों को जानने वाला है?
क्योंकि वह संसार में सब को व्याप्त करके स्थित है |वह संपूर्ण इंद्रियों के विषयों को जानने वाला है | परंतु वास्तव में सब इंद्रियों से रहित है | तथा आसक्ति रहित होने पर भी सबका धारण पोषण करने वाला है |और निर्गुण होने पर भी गुणों को भोगने वाला है | वह चराचर सब भूतों के बाहर भीतर परिपूर्ण है और चर अचर भी वही है |और वह सूक्ष्म होने से अविज्ञ है |तथा अति समीप में और दूर में भी स्थित वही है |
ब्रह्म रूप से सबको उत्पन्न करने वाला है?
वह परमात्मा विभाग रहित एक रूप से आकाश के सदृश्य परिपूर्ण होने पर भी चराचर संपूर्ण भूतों में विभक्त सा स्थित प्राप्ति प्रतीत होता है | तथा वह जानने योग्य परमात्मा विष्णु रूप से भूतों को धारण कर धारण पोषण करने वाला और रुद्र रूप से सार करने वाला तथा ब्रह्म रूप से सबको उत्पन्न करने वाला है वह परम ब्रह्म ज्योति का भी ज्योति एवं माया से भी अत्यंत परे कहा जाता है |
मेरे पर स्वरूप को प्राप्त होता है?
वह परमात्मा बुद्ध स्वरूप जानने योग्य और तत्व तत्व ज्ञान से प्राप्त करने योग्य है |और सबके हृदय में विशेष रूप से स्थित है इस प्रकार क्षेत्र तथा ज्ञान और जानने योग्य परमात्मा का स्वरूप संक्षेप से कहा गया है | मेरा भक्त इसको तत्व से जानकर मेरे पर स्वरूप को प्राप्त होता है | प्रकृति और पुरुष इन दोनों को ही तू अनादि जान राग द्वेष आदि विकारों को तथा त्रिगुणात्मक संपूर्ण पदार्थों को भी प्रकृति से ही उप जान कार्य और कारण को उत्पन्न करने हेतु प्रकृति कही जाती है |और जीवात्मा सुख दुखों के भोक्ता पन में अर्थात भोगने में हेतु कहा जाता है तो आज के लिए हम श्लोक नंबर 20 पर यहीं पर समापन करते हैं कल आपसे मुलाकात होगी|
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