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मेरे परम रहस्य और प्रभाव युक्त वचनों को सुन jisse mai tujhe atishay

मेरे परम रहस्य और प्रभाव युक्त वचनों को सुन jisse mai tujhe atishay


मेरे परम रहस्य और प्रभाव युक्त वचनों को सुन jisse mai tujhe atishay

सीताराम राधे कृष्ण आशा करता हूं आपके घर में सब सुख शांति से होंगे आप अपने माता पिता की सेवा कर रहे होंगे अपने  जीवन में व्यस्त होंगे और परमात्मा को याद कर रहे होंगे अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा दे रहे होंगे |तो कल हमने अध्याय न के श्लोक नंबर 33 तक किया था |आज श्लोक नंबर 34अध्याय न हम समाप्त करेंगे और श्लोक न अध्याय 10 प्रारंभ करेंगे प्रभु बोलते हैं मुझमें मानने वाला हो मेरा भक्त बन मेरा पूजन करने वाला हो मुझको प्रणाम कर प्रकार आत्मा को मुझ में नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा नवम अध्याय समापन की ओर है |


लीला से प्रकट होने को ना देवता लोग जानते हैं ?

 दशम अध्याय प्रारंभ श्री कृष्ण भगवान बोले हे महाबाहु फिर भी मेरे परम रहस्य और प्रभाव युक्त वचनों को सुन जिससे मैं तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के लिए हित की इच्छा से कहूंगा मेरी उत्पत्ति को अर्थात लीला से प्रकट होने को ना देवता लोग जानते हैं और ना ही महर्षि जन ही जन जानते हैं क्योंकि मैं सब प्रकार से देवताओं का और महर्षि का भी आदि कारण हूं जो मुझको अजन्मा अर्थात वास्तव में जन्म रहित अनादि और लोकों का महान ईश्वर तत्व से जानता है |


मनुष्य में ज्ञानवान पुरुष संपूर्ण पाप मुक्त हो जाता है?

वह मनुष्य में ज्ञानवान पुरुष संपूर्ण पाप मुक्त हो जाता है निश्चय करने की शक्ति यथार्थ ज्ञान असम मूर्ता क्षमा सत्य इंद्रियों का वश में करना मन का निग्रह तथा सुख दुख उत्पत्ति प्रलय और भय अभय तथा अहिंसा समता संतोष तप दान कीर्ति और अपकीर्ति ऐसे यह प्राणियों के नाना प्रकार के भाव मुसे ही होते हैं सात महर्षि जन चार उनसे भी पूर्व में होने वाले सनका आदि तथा स्वयं भाबू आदि मनु यह मुझ में भाव वाले सब के सब मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए जिनकी संसार में यह संपूर्ण प्रजा है जो पुरुष मेरी इस परमेश्वर रूप विभूति को और योग शक्ति को तत्व से जानता है 


वह निश्चय भक्ति योग से युक्त हो जाता ?




वह निश्चय भक्ति योग से युक्त हो जाता है इसमें कुछ भी संशय नहीं है मैं वासुदेव ही संपूर्ण जगत की उत्पत्ति का कारण हूं और मुझसे ही सब जगत चेष्टा करता है इस प्रकार समझकर श्रद्धा और भक्ति से युक्त बुद्धिमान भक्ति जन मुझ परमेश्वर की ही को ही निरंतर बसते हैं 

मेरा कथन करते हुए ही निरंतर संतुष्ट होते हैं ?

निरंतर मुझ में मन लगाने वाले और मुझ में ही प्राणों को अर्पण करने वाले जन मेरी भक्ति की चर्चा के द्वारा आपस में प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित मेरा कथन करते हुए ही निरंतर संतुष्ट होते हैं और मुझ वासुदेव में ही निरंतर रमण करते हैं तो आज के लिए हम यही पर समापन करते हैं अध्याय 10 के श्लोक नंबर न से तो आशा करता हूं कि आप अपने घर में सुख शांति से रहेंगे और अपने माता पिता की सेवा करते रहेंगे इस संसार में सबसे प्रेम भाव से बातें करते रहेंगे परमात्मा को याद करेंगे और अपने जो बच्चे हैं आप अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देंगे अपने शास्त्रों का ज्ञान थोड़ा सा लेंगे सनातन धर्म को थोड़ा सा बढ़ाएंगे तो आपसे कल मुलाकात होगी|


                                                       !सीताराम राधे कृष्ण!



गीता का आठवां श्लोक क्या है?


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