भगवान श्री कृष्ण बोलते हैं,?bhagwan shree krishn bolte
भगवान श्री कृष्ण बोलते हैं?,bhagwan shree krishn bolte
सीताराम राधे कृष्ण आशा करता हूं आप सब सुख शांति से होंगे,आपके घर में सब मंगलमय होगा, और आप अपने माता-पिता की सेवा कर रहे होंगे, अपने गृह जीवन में अच्छे से व्यतीत कर रहे होंगे और परमात्मा को याद कर रहे होंगे, तो कल हमने अध्याय न के श्लोक नंबर 17 तक समापन किया था आज श्लोक नंबर 18 से प्रारंभ करेंगे | भगवान श्री कृष्ण बोलते हैं,प्राप्त होने योग्य परम धाम भरण पोषण करने वाला सबका वास स्थान शरण लेने योग्य प्रत्य उपकार न चाहकर हित करने वाला सबकी उत्पत्ति प्रलय का हेतु स्थिति का आधार निधान और अविनाशी कारण भी मैं ही हूं|
हे अर्जुन मैं ही अमृत और मैं मृत्यु ?
मैं ही सूर्य रूप से तपता हूं, वर्षा का आकर्षण करता हूं, और उससे बरसता हूं, हे अर्जुन मैं ही अमृत और मैं मृत्यु हूं, और सत असत्य भी मैं ही हूं, तीनों वेदों में विधान किए हुए काम कर्मों को करने वाला सोम रस को पीने वाला पाप रहित पुरुष मुझको यज्ञों के द्वारा पूज कर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते हैं |वे पुरुष अपने पुण्यं के फल स्वरूप स्वर्ग लोक को प्राप्त होकर स्वर्ग में दिव्य देवताओं के भोगों का भोग भोगते हैं |
पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक को प्राप्त होते हैं!
वे उस विशाल स्वर्ग लोक को भोग कर पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक को प्राप्त होते हैं |इस प्रकार स्वर्ग के साधन रूप तीनों वेदों में कहे हुए, कर्म का आश्रय लेने वाला और भोग की कामना वाले पुरुष बार-बार आगमन को प्राप्त होते हैं |अर्थात पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग में जाते हैं |और पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक में आते हैं |
प्रेमी भक्त जन मुझे परमेश्वर को निरंतर चिंतन करते हैं ?
जो अनन्य प्रेमी भक्त जन मुझे परमेश्वर को निरंतर चिंतन करते हैं | वे निष्काम भाव से बसते हैं उन नित्य निरंतर मेरा चिंतन करने वाले पुरुषों को योग से मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूं, हे अर्जुन यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूछते हैं |वे भी मुझको ही पूछते हैं, किंतु उनका वह पूजन अवधि पूर्वक अर्थात अज्ञान पूर्वक है क्योंकि संपूर्ण योगों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूं,|
अर्थात पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं?
परंतु वे मुझ परमेश्वर को तत्व से नहीं जानते हैं |इसी से गिरते हैं, अर्थात पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं | देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पित्रों को पूजने वाले पित्रों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं, और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको प्राप्त होते हैं | इसलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता है |
जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र पुष्प फल जल ?
जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र पुष्प फल जल आदि अर्पण करता है |उस सद्बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेम पूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र पुष्पा आदि में सगुण रूप से प्रकट होकर पहित खाता हूं,हे अर्जुन तू जो कर्म करता है जो खाता है|जो हवन करता है जो दान करता करता है |जो तप करता है |वह सब मेरे अर्पण करता है |
जिसके समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते हैं ?
इस प्रकार जिसके समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते हैं ऐसे सन्यास संयोग से युक्त चित्त वाला तू शुभ अशुभ फल स्वरूप कर्म बंधन से मुक्त हो जाएगा और उनसे मुक्त होकर मुझको ही प्राप्त होगा मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूं ना कोई मेरा अपय है, और ना कोई मेरा प्रय है, परंतु जो भक्त मुझको प्रेम से भजता है, वह मुझ में है, और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होता हूं|
तो वह साधु ही मानने योग्य है?
यदि कोई अतिशय दुराचार भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको बजता है, तो वह साधु ही मानने योग्य है क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है, अर्थात उसने भली भाति निश्चय कर लिया है |कि परमेश्वर के भजन के सामने अन्य कुछ भी नहीं है| वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहने वाले परम शांति को प्राप्त होता है|
मेरा भक्त नष्ट नहीं होता ?
मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर निरंतर मेरा ही भजन कर
इसलिए तू सुख रहित और क्षण भंडार इस मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर निरंतर मेरा ही भजन कर तो आज के लिए हम यहीं पर समाप्त करते हैं, श्लोक नंबर 33 पर तो आशा करता हूं, आप अपने घर में सुख शांति से र रहेंगे और भगवान को याद करते रहेंगे और अपने माता-पिता की सेवा करते रहेंगे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देंगे परमात्मा को याद कीजिए अपने व्यवहार में चेंज लाइए और अपने शास्त्रों का ज्ञान लीजिए कल आपसे मुलाकात होगी |
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