हे विश्व स्वरूप मैं आपके ना अंत को देखता हूं ? (na madhya ko dekhta hu)
हे विश्व स्वरूप मैं आपके ना अंत को देखता हूं ? (na madhya ko dekhta hu)
अध्याय 11 के श्लोक नंबर 13 ?
सीताराम राधे कृष्ण आशा करता हूं, आप अपने घरमें सुख शांति से होंगे, अपने माता-पिता की सेवा कर रहे होंगे, और अपने ग्रह जीवन में व्यस्त होंगे अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा दे रहे होंगे, और परमात्मा को याद कर रहे होंगे, तो कल हमने अध्याय भगवत गीता के अध्याय 11 के श्लोक नंबर 12 तक समापन किया था| और आज हम अध्याय 11 के श्लोक नंबर 13 से प्रारंभ करेंगे |
संपूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सर्पों को देखता हूं ?
तो इसमें प्रभु श्री कृष्ण बोलते हैं| हे, पांडव पुत्र अर्जुन उस समय अनेक प्रकार से विभक्त अर्थात प्रथक संपूर्ण जगत के देव श्री कृष्ण भगवान के उस शरीर में एक जगह स्थित देखा है| उसकेअंतर वे आशचार्य से चकित और पुलकित शरीर अर्जुन प्रकाश में विश्व स्वरूप परमात्मा को श्रद्धा भक्ति सहित सिर से प्रणाम करके हाथ जोड़कर बोले अर्जुन बोले हे, ब्रह्मा को महादेव और संपूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सर्पों को देखता हूं,|
मैं मुकुट युक्त गदा युक्त और चक्र युक्त ?
हे संपूर्ण विश्व के स्वामिनी आपको अनेक भुजा पेट मुख और नेत्रों से युक्त तथा सब ओर से अनंत रूपों वाला देखता हूं, हे विश्व स्वरूप मैं आपके ना अंत को देखता हूं ना मध्य को देखता हूं, और ना ही आदि को देखता हूं, आपको मैं मुकुट युक्त गदा युक्त और चक्र युक्त तथा सब ओर से प्रकाशमान तेज के प्रज्वलित अग्नि और सूर्य के सदृश्य ज्योतिष ज्योति युक्त कठिन से देखे जाने योग्य और सब ओर से अप्रेम स्वरूप देखता हूं, |
आप ही अविनाशी सनातन पुरुष है !
आप ही जानने योग्य परम अक्षरत अर्थात परम ब्रह्म परमात्मा है |आप ही इस जगत के परम आश्रय हैं| आप ही अनादि धर्म के रक्षक हैं, और आप ही अविनाशी सनातन पुरुष है| ऐसा मेरा मत है |आपको आदि अंत और मध्य से रहित अनंत सामर्थ्य से युक्त अनंत भुजा वाले चंद्र सूर्य रूप नेत्र वाले प्रज्वलित अग्नि रूप मुख वाले और अपने तेज से इस जगत को संतप्त करते हुए देखता हूं,|
देवताओं के समूह आप में प्रवेश करते हैं !
हे महात्मन यह स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का संपूर्ण आकाश तथा सब दिशाए एक आपसे ही परिपूर्ण है| तथा आपके इस अलौकिक और भयंकर रूप को देखकर तीनों लोक अति व्यथा को प्राप्त हो रहे हैं | वे ही देवताओं के समूह आप में प्रवेश करते हैं |और कुछ भयभीत होकर हाथ जोड़े आपके नाम और गुण को उच्चारण करते हैं | तथा महर्षि और सिद्धों को समुदाय कल्याण हू, ऐसा कहकर उत्तम उत्तम स्रोतों द्वारा आपकी स्तुति करते हैं |जो 11 रुद्र और 12 आदित्य तथा आठ वसु संज्ञ विश्वदेव अश्विनी कुमारऔर मरुद गढ़ और पित्रों का समुदाय तथा गंधर्व यक्ष राक्षस और सिद्धों के समुदाय हैं |वे वे सब ही विस्मित होकर आपको देखते हैं |तो आज के लिए हम यहीं पर समापन करते हैं |
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