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हे अर्जुन "आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता !bhagwan shri krishna kahte

 हे अर्जुन "आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता !

हे अर्जुन "आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता !bhagwan shri krishna kahte

सीताराम राधे कृष्ण आशा करता हूं, आपके घर में सब सुख शांति से होंगे आप अपने माता पिता की सेवा कर रहे होंगे, अपने ग्रहस्त जीवन में व्यस्त होंगे, और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और शास्त्र का ज्ञान दे रहे होंगे, अपने परमात्मा को याद कर रहे होंगे, तो कल हमने अध्याय 13 के श्लोक नंबर 28 पर समापन किया था | आज श्लोक नंबर 29 से प्रारंभ करेंगे, और अध्याय 13 का समापन करेंगे , 

उसी क्षण वह सच्चिदानंदन ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है ?

हे अर्जुन "जो पुरुष संपूर्ण कर्मों को सब प्रकार से प्रकृति के द्वारा ही किए जाते हुए देखता है| और आत्मा को अकता देखता है वही यथार्थ देखता है, जिस क्षण यह पुरुष भूतों के प्रथक प्रथक भाव को एक परमात्मा में ही स्थित तथा उस परमात्मा से ही संपूर्ण भूतों का विस्तार देखता है उसी क्षण वह सच्चिदानंदन ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है | 

आत्मा निर्गुण होने के कारण देह के गुणों से लिप्त नहीं होता ?

हे अर्जुन अनादि होने से और निर्गुण होने से यह अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होने पर भी वास्तव में ना तो कुछ करता है और ना ही कुछ लिप्त ही होता है जिस प्रकार सर्वत्र व्याप्त आकाश सूक्ष्म होने के कारण लिप्त नहीं होता वैसे ही देह में सर्वत्र स्थित आत्मा निर्गुण होने के कारण देह के गुणों से लिप्त नहीं होता |


जिस प्रकार एक ही सूर्य इस संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करता ?

हे अर्जुन जिस प्रकार एक ही सूर्य इस संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है उसी प्रकार एक ही आत्मा संपूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है इस प्रकार क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ भेद को तथा कार्य सहित प्रकृति से मुक्त होने को जो पुरुष ज्ञान नेत्रों द्वारा तत्व से जानते हैं वे महात्मा जन परम ब्रह्म को परमात्मा को प्राप्त होते हैं तो अध्याय 13 समापन कल आपसे मुलाकात होगी अध्याय 14 का हम प्रारंभ करेंगे |


                                           "सीताराम राधे कृष्ण" 








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