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प्रभु श्री कृष्ण बोलते हैंparambrahm roop hi shakha hai

 

प्रभु श्री कृष्ण बोलते हैंparambrahm roop hi shakha hai !


प्रभु श्री कृष्ण बोलते हैंparambrahm roop hi shakha hai

सीताराम राधे कृष्ण आशा करता हूं आपके घर में सब सुख शांति से होंगे आप अपने माता पिता की अच्छे सेवा कर रहे हो अपने जीवन में व्यस्त होंगे और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा और शास्त्र का जन दे रहे होंगे तो कल हमने अध्याय समापन किया था |आज अध्याय 15 से प्रारंभ करेंगे |

वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है |

इसमें प्रभु श्री कृष्ण बोलते हैं |आदि पुरुष परमेश्वर रूप मूल वाले और परम ब्रम रूप मुख्य शाखा वाले जिस संसार रूप पीपल के वृक्ष को अविनाशी कहते हैं तथा वेद जिसके पत्ते कहे गए हैं |उस संसार वृक्ष को जो पुरुष मूल सहित तत्व से जानता है |वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है |

सभी लोकों में व्याप्त हो रही है ?

उस संसार रूप वृक्ष की तीनों गुणों रूप जल के द्वारा बड़ी हुई एवं विषय भोग रूप को पलो वाली देव मनुष्य तिर्यक आदि योनि रूप शाखाएं नीचे और ऊपर सर्वत्र फैली हुई है | तथा मनुष्य लोक में कर्म के अनुसार बांधने वाले  ममता और वासना रूप जड़े भी नीचे और ऊपर सभी लोकों में व्याप्त हो रही है | 

इस संसार को वृक्ष का स्वरूप जैसा कहा है ?

इस संसार को वृक्ष का स्वरूप जैसा कहा है |वैसा यह विचार काल में नहीं पाया जाता है |क्योंकि ना तो इसका आदि है |और ना ही ना अंत है तथा ना इसकी अच्छी प्रकार से स्थिति है |इसलिए इस महत्तम ममता और वासना रूप अति दृढ़ मूल वाले संसार रूप पीपल के वृक्ष दृढ़ वैराग्य रूप शास्त्र द्वारा काटकर उसके पश्चात उस परम पद रूप परमेश्वर को भली भाति खोजने चाहिए |

जिसमें गए हुए पुरुष फिर लौटकर संसार में नहीं आते ?

जिसमें गए हुए पुरुष फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परमेश्वर से इस पुरातन संसार वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार रूप से प्राप्त हुई है |उस आदि पुरुष नारायण की के मैं शरण हूं तो आशा करते हैं आपके घर में सब सुख शांति से होंगे आज के लिए यहीं समापन करते हैं|

                                 "सीताराम राधे कृष्ण" 



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